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गन्ने और बांस में भी आप देखिए . . . थोडे थोडे अन्तराल में जहाँ सन्धिस्थान-पर्वस्थान आता है उसे “गांठ” कहते हैं । सामान्यरूप में भी गने को चबाते समय या रस चूसते समय गांठ के बड़े भारी कठीन भाग को चबाना या उसमें से रस चूसना बहुत मुश्किल होता है । ये ग्रन्थि प्रदेश कहलाते हैं । सामान्य रूप से भी देखा जाय कि रेशम का धागा हो और उसमें गांठ पडी हो... उसमें भी ऊपर से कसकर और २-४ गांठे लगा दी जाय...फिर उसपर तेल डाला जाय तो खोलना कितना मुश्किल हो जाय? अरे ! मुश्किल ही क्या असंभवसा लगेगा। थोडा सोचिए... यह तो धागे में गांठ है । परन्तु आत्मा के राग-द्वेष के अध्यवसाय में जब गांठ पडती है तब वह बडी भारी निबिड गांठ होती है । दुर्भेद्य कहलाती है । शास्त्रकार महर्षी विशेषावश्यक भाष्य में कहते हैं कि
गंठित्ति सुदुब्भेओ, कक्खडघणरूढगूढ गंठिव्व।
जीवस्स कम्मजणिओ, घणरागद्दोसपरिणामो ॥ १२०० ॥ . बडी भारी मजबूत, कर्कश, घन, गाढ, रूढ, गांठ जो दुर्भेद्य होती है। खोलनी असंभवसी लगती है। इसी तरह जीवों के तीव्र राग-द्वेष के अत्यन्त कलुषित कर्म-परिणामों की बनी हुई गांठ-कितनी गाढ-मजबूत होती होगी? सोचिए.... उसे दुर्भेद्य कहा है। उसे खोलना... अर्थात् तथाप्रकार के तीव्र राग-द्वेषों को कम करना। अपने परिणामों को नम्र-सरल-कषायरहित करने की पूरी कोशिश करनी चाहिए ।
बैलगाडी के पहियों की धूरि पर जो कोट लगी हुई रहती है, यदि वह कपडे पर लग जाय तो...घिसने पर शायद कपडा फट जाय परन्तु... दाग निकलना असंभवसा लगता है। ठीक ऐसा ही आत्मा के राग-द्वेष युक्त मलीन परिणाम जो कषाययुक्त होकर दीर्घकालीन गांठ रूप बन जाते हैं । कपडा फटने की तरह व्यक्ति मर भी जाय तो भी कषायों की तीव्रता में जो भी कुछ राग-द्वेष की प्रवृत्ति की है उसकी क्षमायाचना करने से वह सर्वथा इनकार कर देता है । संसार में आज भी कई जीव ऐसे हैं जो किसी भी परिस्थिति. में क्षमायाचना करने के लिए तैयार ही नहीं होते हैं। चाहे मरना पडे तो कबूल है, परन्तु अपनी जिद्द को छोड़ने के लिए किसी भी तरह तैयार नहीं होते हैं । यही कषाय की भारी गांठ... होती है। हमारे आध्यात्मिक जीवन के विकास में ऐसी गांठ प्रतिबंधक अवरोधक बनती है। सामान्य कषाय वैसे भी किसी के जीवन का विकास रूंध देते हैं तो फिर भयंकर कषाय की गांठ का तो पूछना ही क्या? जीवन विकास का एक भी सोपान वह चढने ही नहीं देगा। आध्यात्मिक विकास की दिशा में राजमार्ग पर आगे बढ़ते ही
सम्यक्त्व गुणस्थान पर आरोहण
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