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________________ अध्याय १४ का प्रवेश द्वार अप्रमत्तभावपूर्वक ध्यान साधना अप्रमत्त बनने के उपाय...........९१३ अप्रमत्त साधक.................................. ९१५ सजग-जागृत साधक हा अप्रमत्त साधक है ........ ९१६ मोहनीय कर्म की प्रवृत्ति से सभी कर्मों का बंध...... ९२० १८ पाप की प्रवृत्तियों से ८ कर्म..................... प्रमाद से पुनः पाप और पाप से पुनः प्रमाद........... आवश्यक की आवश्यकता........................ सबसे कठिन स्थिरता.............................. मन के विषय में आनन्दघनजी योगी का वक्तव्य .....९२८ मन की चंचलता का मूल कारण ...................९३२ प्रमाद और मोहनीय का संबंध......................९४० १४ गुणस्थानों पर साधु-असाधु................... .९४२ बंध हेतुओं के अनुरुप गुणस्थानों का नामकरण......९४६ गुणस्थानों के नाम पर बंधहेतुओं की छाप...........९४८ बंधहेतुओं द्वारा आवृत्त धर्म..... गुणस्थानों का परिवर्तन कैसे?.....................९६२ अप्रमत्त के लिए प्रतिकमण नहीं......... .....९६६ अप्रमत्त की कक्षा में प्रवेश........................९६८ मोहक्षय की साधना - त्याग,तग से अप्रमत्त भाव... ९७० आखिर प्रमाद क्यों ?........... ..............९७२ .....९५६
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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