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________________ लेकिन बीते हुए अनन्तानन्त क्षणवाले अनन्त भूतकाल में भी जिसका अन्त नहीं हुआ, नष्ट नहीं हुआ, लोप नहीं हुआ, तो फिर उस पदार्थ का अस्तित्व अनन्त भावि-भविष्यकाल में भी बना ही रहेगा। इसमें कोई शंका रहनी ही नहीं चाहिए। यह निश्चित ही है कि भूतकाल में जिस सूर्य का उदय होता ही रहा है उस सूर्य का उदय भविष्य में भी होता ही रहेगा। इस तरह भूतकालीन निश्चित अनुभव के आधार पर यदि कोई सामान्य गँवार व्यक्ति भी भविष्य का अनुमान करें तो उसमें कोई गलती नहीं है । उस दृष्टि से गाँव की गँवार व्यक्ति भी आयुष्यभर सूर्य को उदित होते देखकर भविष्य के लिए स्पष्ट सत्य कह सकता है कि.... कल-परसों और आगे भी सूर्य का उदय होता ही रहेगा। ठीक उसी तरह अनन्त भूतकाल में जिस पदार्थ का अस्तित्व जैसा रहा है उस पदार्थ का अस्तित्व भविष्य में भी बना ही रहेगा। अवस्था (पर्याय) परिवर्तन होता ही रहेगा। लेकिन पदार्थ के अस्तित्व का लोप कभी भी संभव ही नहीं है । इस सिद्धान्तानुसार आत्मा पदार्थ के अस्तित्व का लोप कदापि नहीं होगा। संभव ही नहीं है । अतः आत्मा नामक पदार्थ की त्रैकालिक सत्ता सदा बनी ही रहेगी। हाँ, पर्याय जरूर परिवर्तनशील ही है । अतः परिवर्तन होता ही रहेगा । उत्पाद-व्यय होता ही रहेगा। फिर भी द्रव्य स्वरूप से अस्तित्व ध्वरहेगा। तभी तो मोक्षसंभव होगा। इसी चेतन भव्यात्मा की भूतकालिक पर्याय संसारी अवस्था रहेगी, और भविष्यकालिक पर्याय ही मोक्ष पर्याय बनेगी। इस जबतक यह भव्यात्मा मुक्ति नहीं पाएगा तब तक संसारी पर्याय और जिस दिन मुक्ति प्राप्त हो जाय उस दिन मुक्त पर्याय, सिद्ध पर्याय है। बस, मुक्ति प्राप्ति की पर्याय के पूर्व की समस्त पर्यायें संसारी पर्याय हैं । पर्यायों का परिवर्तन तो उत्पाद–व्यय से ही होगा। उत्पाद-व्यय निरंतर होते रहने के बावजूद भी द्रव्यरूपसे पदार्थ का अस्तित्व ध्रुव नित्य रहेगा । इसलिए संसारी अवस्था में अनन्तानन्त पर्यायें आत्मा की बदलने के बावजूद भी ध्रुवरूप से आत्मा का स्वरूप अस्तित्व आज भी है। और मुक्तावस्था उसी आत्मा नामक द्रव्य की हुई है और इस मुक्तावस्था में बस, अब अनन्तकाल तक एक ही पर्याय सदा के लिए रहेगी। अब पर्याय परिवर्तन भी नहीं होगा। अतः उत्पाद-व्यय के अभाव में पर्याय परिवर्तन का भी अभाव रहेगा। अतः ध्रुव रूप से आत्मा नामक द्रव्य का सदाकाल अस्तित्व बना ही रहेगा। यह सत्ता सदा रहेगी । क्योंकि पदार्थ ही सत् है । असत नहीं है । जो असत होता है उसकी सत्ता नहीं रहती। और जिसकी सत्ता रहती है वह सत् ही होता है। अतः इस तरह पदार्थ के यथार्थ-वास्तविक सत्यस्वरूप को मानना-जानना-समझना-समझाना सम्यग् मार्ग है । ठीक इससे विपरीतीकरण मिथ्या कर्मक्षय- “संसार की सर्वोत्तम साधना" ९०९
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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