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है और न ही कभी नष्ट होता है । यदि नष्ट ही हो जाय तो फिर मोक्ष कैसे होगा? मुक्ति किसकी होगी? जब नष्ट ही हो जाय तो फिर बचा क्या? फिर मुक्ति किसकी? मोक्ष किसका? आश्चर्य तो इस बात का है कि आत्मा के अस्तित्व को ही न मानें तो फिर मोक्ष किसका? मोक्ष का आधार किस पर? क्या शरीर का मोक्ष मानें? शरीर तो जड है। तो क्या जड की भी मुक्ति होती है ? क्या जड की मुक्ति संभव भी है ? तो तो फिर संसार में अनन्त जड पदार्थ हैं। इन सबकी मुक्ति क्यों नहीं हो गई? अभी भी अनन्त जड पदार्थ संसार में ऐसे ही पडे हैं । उसकी तो मुक्ति नहीं हुई? तो क्यों नहीं हुई? क्या कारण है ? क्या उनका नम्बर नहीं आया? वाह ! क्या तर्कयुक्ति है ? और ऐसे स्वयं निष्क्रिय जड पदार्थ को मुक्ति में कौन ले गया? जो स्वयं सक्रिय नहीं है वह कर्ता कैसे बन सकता है?
और कर्ता ही न बन सके तो फिर क्रिया कैसे कर सकेगा? कर्ता होता है वह क्रिया करनेवाला होता है । और जो क्रिया का करनेवाला होता है वही कर्ता होता है । जड-पुद्गल पदार्थ है वह न तो कर्ता है और न ही क्रिया का कारक है । अतः जड की मुक्ति संभव ही नहीं है । जड की मुक्ति मानना यह तो सबसे बडी मूर्खता होगी। तो फिर मुक्ति-मोक्ष को भी जडात्मक मानना पडेगा । यदि मोक्ष को भी जडात्मक ही मानना हो तो फिर जड पदार्थ का मोक्षगमन ही क्यों मानना? फिर तो ऐसे जड पदार्थ जहाँ भी पडे हैं बस वहीं उनकी मुक्ति मान लें । अरेरे ! यह सब पागल व्यक्ति के प्रलाप जैसी बातें हैं।
यदि निष्क्रिय जड को मोक्ष में ले जानेवाला कोई अन्य चेतन कर्ता मानने जाये तो फिर अच्छा यही है कि उस चेतन जीवात्मा की ही मुक्ति मानें । यही सत्य है । लेकिन यहाँ भी आपत्ति है कि...सर्वं क्षणिक, सर्वं अनित्यं कहा है। सर्वं शब्द से आत्मा द्रव्य भी ग्राह्य है। उसी में अन्तर्निहित है इसलिए। तो क्या आत्मा क्षणिक या अनित्य होने के कारण अनित्य हो क्यों नहीं गयी? क्यों जी? काल की दृष्टि से भूतकाल की अपेक्षा से आज दिन तक कितने क्षण बीत गये होंगे? जबकि भूतकाल ही अनन्त वर्षों का, युगों का बीत चुका है तो फिर उस बीते हुए अनन्त वर्षों के भूतकाल में वर्ष ही जब अनन्त बीत गए हैं तो फिर उसमें क्षण कितने बीतें? स्पष्ट ही है कि... अनन्तानन्त क्षण बीत चुके हैं। सोचिए ! क्या इतने बीते हुए क्षणों में एक द्रव्य जो अनित्य है, नाशवन्त है, क्षणिक है, उसका अभी तक भी नाश नहीं हो गया? यदि प्रति क्षण क्षण-क्षणिक है, प्रत्येक उस पदार्थ में से परमाण बिखरते ही जाते हैं, तो आज दिन तक अनन्तानन्त क्षण बीत चुके हैं, तो फिर उसमें एक पदार्थ भी नष्ट नहीं हो गया? अरेरे !...अब तक तो कबका उसका अस्तित्व ही मिट गया होता? अंश मात्र भी पदार्थ का स्वरूप बचा ही न होता।
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आध्यात्मिक विकास यात्रा