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तो फिर उसी आत्मा की भिन्न-भिन्न अवस्थाओं को कैसे मानेंगे? इसलिए बिना केन्द्र के वृत्ताकार बनाने की अर्थात् केन्द्रीभूत आत्म तत्त्व को माने-जाने-समझे-स्वीकारे बिना ध्यानादि का सारा डोल करना यह बालिश चेष्टा मात्र ही है । खुद स्वयं किसी दर्शन
की दार्शनिक मान्यता की खींटी पर बंधे हुए रहना और चाहे वह सत्य हो या गलत हो फिर भी उसे गधे की पूछ की तरह पकडकर बैठना और दूसरों को सामने से दर्शन विषयक तत्त्व की विचारणा करने से साफ इन्कार कर देना । ज्ञान के द्वार बंद कर के मात्र स्वमत के मान्य ध्यान का आग्रह करना ऐसा क्यों? अरे ! जब आपको अपने तत्त्वों की सच्चाई का गौरव है तो फिर तत्त्वज्ञान के द्वार बन्द क्यों करने चाहिए? . .
ऐसे बन बैठे गुरुओं का यह कहना है कि किसी अन्य ने पहले जो ज्ञान पाया है क्या जरूरी है कि हम उस ज्ञान को प्राप्त करें? उस ज्ञान को लेकर चलें । नहीं, हम भी नया ज्ञान ध्यानसाधना के बल पर प्राप्त करेंगे। स्वानुभूति के बल पर वैसा ज्ञान प्राप्त. करके ज्ञानानन्द का रसास्वाद प्राप्त करेंगे। अतः किसी अन्य के प्राप्त ज्ञान पर आधार क्यों रखना? सोचिए..देखिए, ऐसे आत्मवंचक मिथ्याभिमान को। जिस बद्ध को बोधि-सत्त्व का ज्ञान प्राप्त हुआ है उसीके ज्ञान को स्वीकारते-मानते-जानते-समझते हुए चल रहे हैं स्वयं.. उसी ज्ञान के बल पर दुनिया को समझाना और दूसरों को यह उपदेश देना कि किसी के प्राप्त ज्ञान को मत स्वीकारो । वरना तुम्हारे अपने ज्ञान के स्रोत बन्द हो जाएंगे। अनुभूति के बल पर जो कुछ प्राप्त करना है उसके द्वार बन्द हो जाएंगे। अरे ! गुरु ने खुद ने दूसरे के द्वारा प्राप्त ज्ञान को स्वीकार लिया। बस, उसीके बल पर चल रहे हैं और दूसरे अनेक सज्जन जो अपने-अपने धर्म के भगवान द्वारा उपदिष्ट दत्त तत्त्व के ज्ञान को लेकर आ रहे हैं । तब उनको साफ ना कह देना । बन्द करो तुम्हारा यह बकवास । अब दूसरे के ज्ञान को आधार बनाकर कब तक चलोगे? छोडो...बस, अब तो स्वयं साधना करो और अपनी अनुभूति के बल पर स्वयं ज्ञान को पाओ, अनुभव करो और आगे बढो। __ क्यों? क्या बात है? बुद्ध को प्राप्त ज्ञान को अपनाकर स्वयं झंडा लेकर चलना दुनिया भर में और अपने आप दूसरों को साफ इन्कार कर देना कि अपनी-अपनी मान्यता-विचारधारा के बंधन को छोड़ दो। तो क्या कोई महावीर का अनुयायी है और उसने महावीर का ज्ञान प्राप्त किया है तो उसमें क्या गलती की है? अरे ! महावीर का ध्यान देहध्यान नहीं था। उन्होंने सच्ची आत्मध्यान की साधना की, कर्मावरण को दूर करके सर्वोत्तम संसार के चरम सत्य का ज्ञान प्राप्त किया और उसको गलत बताकर तुम स्वयं
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आध्यात्मिक विकास यात्रा