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पहले मिथ्यात्व गुणस्थान से लेकर ७ वें अप्रमत्त गुणस्थान पर्यन्त तद्वर्ती जीव ७ अथवा ८ कर्म बांधते हैं । जब आयुष्यकर्म भी बांधे तब ८ कर्म बांधे ऐसा कहा जाता है और यदि आयुष्यकर्म न बांधे तो ७ कर्म बांधता है ऐसा कहा जाता है । परन्तु ७ कर्म तो अवश्य बंधते ही हैं । इसी तरह अविरति, प्रमाद, कषायादि की तीव्रता भी ज्यादा कारणभूत बनती है । मिश्र तीसरे, ८ वें अपूर्वकरण, तथा ९ वें अनिवृत्ति बादर इन गुणस्थानों पर ७ कर्मों का ही बंध होता है। आठवें आयुष्य कर्म का बंध यहाँ नहीं होता है अतः आयुष्य के सिवाय ७ कर्मों का बंध होता रहता है । मिश्र तीसरे गुणस्थान पर तथा स्वभाव से ही जीव आयुष्यकर्म बांधता ही नहीं है और अपूर्वकरण तथा अनिवृत्ति बादर ८ वें तथा ९ वे गुणस्थान पर अत्यन्त विशुद्ध अध्यवसाय होने के कारण आयुष्य का बंध होता ही नहीं है। चूंकि आयुष्य का बंध घोल के परिणाम से होता है।
सूक्ष्म संपराय नामक १० वे गुणस्थान पर मोहनीय कर्म तथा आयुष्यकर्म का भी बंध नहीं होता है अतः इन २ के सिवाय ६ कर्मों का बंध होता है। क्योंकि मोहनीय कर्म का बंध तो स्थूल कषाय के उदय से होता है । और १० वे गुणस्थान पर स्थूल कषाय का अभाव होता है तथा क्षपकश्रेणी पर आरूढ जीव कर्मक्षय-निर्जरा कर रहा है अतः बंध संभव नहीं है। इसी तरह अत्यन्त विशुद्ध अध्यवसाय होने के कारण आयुष्य का भी बंध नहीं होता है। सिर्फ शेष ६ कर्मों का बंध हो सकता है। उपशान्त मोह. ११ वे, १२ वे क्षीणमोह, तथा १३ वे सयोगी केवली गुणस्थान पर सिर्फ १ शाता वेदनीय कर्म ही बंधता है। और अन्तिम १४ वे गुणस्थान पर जीव अयोगी होता है अतः १४ वे गुणस्थान पर कर्म बांधने का कोई सवाल ही खडा नहीं होता है। कषायादि के कारण प्रमादप्रस्तता- ।
कषायाणां चतुर्थानां, व्रती तीवोदये सति । भवेत्प्रमादयुक्तत्वातामत्तस्थानगो मुनिः
॥२७॥ गुणस्थान क्रमारोह ग्रन्थ के उपरोक्त श्लोक में इस प्रकार की ध्वनि स्पष्ट की गई है कि...जैसे जैसे जीव आगे के गुणस्थानों के सोपानों पर अग्रसर होता है वहाँ पीछे पीछे के गुणस्थानवर्ती बंधहेतुओं का उदय सत्ता न होने के कारण जीव आगे बढता है । मिथ्यात्व तो सिर्फ पहले गुणस्थान तक ही था। अतः वहाँ से आगे बढने या ऊपर चढने पर अब वह भी नहीं रहा । ५ वें गुणस्थान पर जो अविरतिजन्य आश्रव और बंधहेतुओं दोनों की सत्ता-उदय है अब आगे के छठे गुणस्थान पर पहुँचने के कारण जब साधक ने सर्वविरति
कर्मक्षय- “संसार की सर्वोत्तम साधना"
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