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अनन्तकाल के बाद भी यदि आप यह प्रश्न पूछेंगे कि अभी भी संसार में मिथ्यात्वी कितने बचे हैं? तब भी "अनन्त " की संख्या का ही उत्तर मिलेगा । भूतकाल में बीते अनन्तकाल में अनन्त तीर्थंकर अरे ! अनन्त चौबीशीयाँ बीत चुकी हैं । इतने अनन्त तीर्थंकरों ने एक ही काम किया है— संसारी जीवों में से मिथ्यात्व दूर करने का । इतने भगीरथ प्रयास के बाद भी संसार में आज भी मिथ्यात्वियों की निन्नानवें प्रतिशत संख्या है, और सृष्टि के छोटे-बड़े सभी जीवों के अस्तित्व की दृष्टि से संख्या में गणना करने बैठें तो “अनन्त” की संख्या का ही उत्तर आज भी मिलेगा। जब एक आलु प्याज अनन्त जीव हैं तो फिर सवाल ही कहाँ रहा ? सोचिए । शायद आप कहेंगे- मात्र मनुष्यों का ही विचार करिए। ठीक है । चलिए वह भी गणना कर लीजिए ।
वर्तमान विश्व की ६०० करोड की जनसंख्या में कितने फीसदी मिथ्यात्वी और कितने फीसदी शुद्ध सम्यक्त्वी जीव मिलेंगे ? अरे ! औरों की बात तो दूर रही परन्तु एक मात्र जैनों में ही गिन लीजिए तो भी सभी सम्यक्त्वी मिलनेवाले नहीं हैं । अरे ! सभी की तो बात ही कहाँ है, १ प्रतिशत भी सम्यक्त्वी मिलेंगे कि नहीं ? यह प्रश्न खडा होगा । समस्त दुनिया के ९९% प्रतिशत लोग मिथ्यात्वी, और उसके १% कितने होंगे ? सोचिए । अरे समस्त जैनों की जनगणना लीजिए। मान लो वह भी १ - २ करोड की हो तो उनमें भी १% शुद्ध सम्यक्दृष्टि कहाँ हैं ? मिथ्यात्व का पलडा सदा भारी रहता है ।
भगवान महावीर का आयुष्य काल ७२ वर्ष का था । ३० वर्ष गृहस्थाश्रम में बीते + १२ ॥ वर्ष साधना में बीते । कुल ४२ ॥ वर्ष का काल तो बीत गया। अब शेष ३० वर्ष का काल बचा। भगवान ने ३० वर्ष तक अथाग पुरुषार्थ करके जगत को उपदेश देकर मिथ्यात्व के अन्धकार को दूर करने के लिए देशना दी लेकिन सभी जीव कहाँ सम्यक्त्व पा गए ? अरे ! सभी जीव भगवान महावीर के संपर्क में भी कहाँ आ पाए हैं ? भ. महावीर के जाने के बावजूद आज भी प्रतिशत संख्या में मिथ्यात्व का प्रमाण अभी भी कम नहीं है ।
मिथ्यात्व की त्रैकालिक अधिकता
शायद ही आप इस बात पर यकीन करेंगे के तीनों काल में सदा ही मिथ्यात्व की प्रमाण में अधिकता रही है । मिथ्यात्वग्रस्त ऐसे मिथ्यात्वी जीवों की संख्या तीनों काल में
सम्यक्त्व गुणस्थान पर आरोहण
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