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________________ पाप चलता ही रहता है यह बड़ा भारी विषचक्र है। जैसे किसी मशीन की गति चलती ही रहती है स्वयंसंचालित होने के कारण । जब तक विद्युत संबंध है तब तक उसकी गति में रुकावट नहीं कर्मबंधा आती है, निरंतर-अखंडित रूप से चलती ही रहती है। ठीक इसी तरह मिथ्यात्वी जीव का भी संसार चक्र में परिभ्रमण निरंतर-अखंडित चलता ही रहता है । रुकता ही नहीं है। उदय अचरम अनन्त पुद्गल परावर्त काल मिथ्यात्व रूपी विद्युत संपर्क से बंधी हुई मिथ्यात्वी की मशीन का भवभ्रमणरूपी पहिया निरंतर- अखण्ड रूप से चलता ही रहता है । मिथ्यात्व की उपस्थिति के कारण संसार चक्र की अनादि-अनन्तता सिद्ध होती है । भूतकाल में भी मिथ्यात्वियों के कारण यह संसार अनन्तकाल का रहा है और भविष्य में भी मिथ्यात्व के कारण ही संसार का अस्तित्व अनन्तकाल तक बरोबर बना ही रहेगा। संसार की अनादि-अनन्तता का आधार मिथ्यात्व पर है जब तक मिथ्यात्व रूपी महामारी का यह संक्रामक रोग नेस्तनाबूद नहीं होता है तब तक संसार के अस्तित्व का अन्त कभी भी संभव ही नहीं है । भूतकाल में अनन्तकाल बीत गया । इतने अनन्तकाल में तो संसार का अन्त नहीं आया तो फिर भविष्य में आगे भी अनन्तकाल ही बीतनेवाला है। जो अभी अवशिष्ट है, भविष्य में से प्रतिक्षण-प्रतिदिन काल वर्तमान में आकर भूत के गर्त में जाकर समा रहा है। इसमें भविष्य काल कभी समाप्त होनेवाला नहीं है, क्योंकि अनन्त है। और भूतकाल कभी बढनेवाला नहीं है क्योंकि वह भी अनन्त है। इस तरह संसार की अनादि-अनन्तता मिथ्यात्वी जीवों के कारण है । ये भी अनन्त की संख्या में हैं। इसलिए अन्त का सवाल ही कहाँ खडा होता है? ४५४ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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