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दशवें सूक्ष्मसम्पराय गुणस्थान पर १०२ प्रकृतियाँ सत्ता में रहती हैं। जिननाम के बिना १०१ रहेगी । आहारक ४ के बिना ९८, और दोनों के साथ न रहने पर ९७ रहेगी । क्षपकश्रेणिवाले जीव के लिए - बारहवें क्षीणमोह गुणस्थान पर १०१ कर्मप्रकृतियों की सत्ता रहती है । जिननाम के बिना १०० और आहारकचतुष्क के बिना ९७ तथा दोनों साथ न रहने पर ९६ प्रकृतियाँ सत्ता में रहेगी । ९६ की संख्या बारहवे गुणस्थान के उपान्त्य समय तक रहती है । तथा अन्त समय में सत्ता में ९९ प्रकृतियाँ होती है । अन्त समय में भी जिननाम बिना ९८, आहारकचतुष्क बिना ९५, तथा दोनों के साथ न रहने पर ९४ प्रकृतियाँ सत्ता में रहेगी ।
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तेरहवें सयोगी केवली गुणस्थान पर सत्ता में ८५ कर्मप्रकृतियाँ रहती है । जिननाम बिना ८४, और आहारकचतुष्क बिना ८१, तथा दोनों साथ न रहने पर ८० प्रकृतियाँ रहेगी । - १४ वे गुणस्थान अयोगी केवली के भी उपान्त्य समय तक ८५ कर्मप्रकृतियाँ सत्ता में रहती हैं। जिननाम के बिना ८४, आहारकचतुष्क बिना ८१, तथा दोनों साथ न रहने पर ८० प्रकृतियाँ सत्ता में रहेगी । चौदहवे गुणस्थान के अन्तिम समय में मात्र १२ कर्मप्रकृतियाँ सत्ता में रहती हैं। शाता या अशाता वेदनीय दो में से एक वहाँ भी सत्ता में रहती है । जिननाम के बिना वहाँ ११ रहेगी । और १४ वे गुणस्थान के अन्त में, अन्तिम समय में कर्म का सत्ता में से सर्वथा सर्वांशिक - समूल क्षय - नाश हो जाता है । बस, फिर नाममात्र भी कर्म शेष नहीं रहते हैं । आत्मा सर्वथा कर्मरहित, अनादि के कर्मसंयोग से मुक्त होकर सिद्ध-मुक्त बन जाती है । बस, फिर मुक्तात्मा को पुनः कोई कर्मबंध नहीं होता है । वहाँ शरीर, इन्द्रियाँ, मन, वचनादि में से कुछ भी नहीं रहता है। एकमात्र आत्मा ही रहती है । वह भी आकाश प्रदेश के आधार स्थान पर स्थिर हो जाती है। यह स्थिरता अनन्तकाल तक रहती है ।
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गुणस्थानों पर उदीरणा
कर्म के उदय का काल परिपक्व न होने पर भी अर्थात् उदय में न आने पर भी सत्ता में पडे हुए उस कर्म को क्षय करने की प्रक्रिया उदीरणा है । यह उदीरणा अनेक कर्मों को खपाती है । उदीरणा प्रयत्नपूर्वक प्रबल पुरुषार्थपूर्वक की जाती है, तब बिना उदय में आए ही कर्मों की निर्जरा संभव हो पाती है । १४ गुणस्थानों पर रहे हुए जीव कहाँ कितने कर्मों की उदीरणा करते हैं उनका विचार भी चौथे कर्मग्रन्थ में ६१ वी गाथा में किया गया है। १, २, ४, ५ और ६ इन गुणस्थानवर्ती जीव ७ ८ कर्मों की उदीरणा करते हैं। तीसरे
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आध्यात्मिक विकास यात्रा