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________________ उपशम, क्षयोपशम तथा क्षायिकादि तीनों सम्यक्त्व हो सकते हैं। और इन तीनों सम्यक्त्व की अपेक्षा से सत्तास्थान एक समान होते हैं । उपशम श्रेणि आश्रयी आठवे अपूर्वकरण गुणस्थान पर सर्वसामान्य रूप से १४८ कर्मप्रकृतियों की सत्ता रहती है। वहीं जिननाम के बिना १४७ रहती है । और आहारक चतुष्क के बिना १४३ की सत्ता रहती है। तथा देवायुष्य बंधक को आहारक चतुष्क जिननाम के बिना सत्ता में १४१ प्रकृतियाँ रहती हैं । तथा साथ ही अनन्तानुबंधी चतुष्क के बिना १३७ की सत्ता रहती है । क्षायिक समकिती जिननाम, आहारक चतुष्क, रहित देवायुबंधक को सत्ता में १३४ की सत्ता रहती है। आठवें गुणस्थान पर चरम शरीरी क्षायिक समकिती उपशमश्रेणी आश्रयी आहारक चतुष्क, जिननाम के बिना सत्ता में १३३ कर्मप्रकृतियाँ रहती हैं । नौवें अनिवृत्ति बादर गुणस्थान, १० वें सूक्ष्मसंपराय, ११. वें उपशान्त मोह गुणस्थान पर-आठवें गुणस्थान की तरह ३२ सत्तास्थान होते हैं। नौंवे गुणस्थान पर क्षपक श्रेणि आश्रयी पहले भाग पर सत्ता में १३८ प्रकृतियाँ रहती हैं। जिननाम बिना १३७ रहती हैं । तथा आहारक चतुष्क के बिना १३४ रहती हैं। दूसरे भाग में सत्ता में १२२ प्रकृतियाँ होती हैं । जिननाम बिना १२१ रहती है । आहारक चतुष्क के बिना ११८ रहती है। दोनों साथ में न रहने पर ११७ रहती है । यहाँ कुछ मतांतर भी है । नौवे के तीसरे भाग में ११४ प्रकृतियाँ सत्ता में रहती हैं। जिननाम के बिना ११३, आहारक चतुष्क के बिना ११०, तथा दोनों साथ में न होने पर १०९ रहती हैं । नौंवे के ४ थे भाग में — ११३ सत्ता में, जिननाम बिना ११२, आहारक चतुष्क के बिना १०८, तथा दोनों के एक साथ न होने पर १०८ सत्ता में रहती हैं । ५ वे भाग पर ११२, जिननाम के बिना १११, आहारक चतुष्क के बिना १०८, और दोनों के एकसाथ न रहने पर १०७ सत्ता में रहती है । छट्ठे भाग पर १०६ रहती है । जिननाम के बिना १०५ आहारकचतुष्क के बिना १०२ और दोनों के साथ न होने पर १०१ प्रकृतियाँ सत्ता में होती है । नौंवे के ७ वे भाग पर १०५ रहती हैं। जिननाम के बिना १०४ और आहारकचतुष्क के बिना - १०१, तथा दोनों के साथ न होने पर १०० रहेगी । ८ वे भाग पर १०४ में से जिननाम के बिना १०३ तथा आहारकचतुष्क के बिना १००, और दोनों के साथ न होने पर ९९ रहेगी । नौंवे गुणस्थान के नौवे भाग पर १०३ में से जिननाम के बिना १०२ तथा आहारकचतुष्क के बिना ९९, और दोनों के साथ न रहने पर ९८ रहेगी । I कर्मक्षय - " संसार की सर्वोत्तम साधना" ८६५
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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