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है तो बिना बंध के सत्ता में कहाँ से आएगा ? अनादि मिथ्यात्वग्रस्त जीवों को १३१ कर्मप्रकृतियाँ सत्ता में पडी रहती है । ये दोइन्द्रियादि कक्षा के जीव रहते हैं । यदि पंचेन्द्रिय जीव हो और वह अनादि मिथ्यादृष्टि हो तो १४१ कर्मप्रकृतियाँ सत्ता में रहती है ।
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अभव्य जीवों की सत्ता में १४१ प्रकृतियाँ पडी रहती है। इसी तरह दुर्भव्य जीवों को भी सत्ता में १४१ प्रकृतियाँ पडी रहती है । और अनादि मिथ्यादृष्टि भव्य जीव चाहे वह लघुकर्मी हो या भारेकर्मी हो तो भी दोनों को १४१ कर्मप्रकृतियाँ सत्ता में पडी रहती है । अनादि मिथ्यादृष्टि हो लेकिन चरम शरीरी जीव हो तो उस जीव को १३८ कर्मप्रकृतियाँ सत्ता में घर कर रहती है । वही चरम शरीरी और सादि - सान्त मिथ्यादृष्टि जीवों में से किसी एक जीव विशेष के आश्रय से जिननाम, आहारकचतुष्क, ३ आयुष्य इतनी के सिवाय १४० कर्मप्रकृतियाँ सत्ता में रहती हैं।
२) सास्वादन दूसरे गुणस्थान पर अनेक जीवों के आधारपर १४७ कर्मप्रकृतियाँ सत्ता में पडी रहती हैं । तथा तद्गति आयुष्य के बंधक आदि को १४० की भी सत्ता रहती
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३) मिश्र गुणस्थानक तीसरे पर सामान्य से १४७ कर्मप्रकृतियों की सत्ता रहती है । इसमें भी अबद्ध आयुष्य और बद्धायुष्य आदि स्थितियों में १४५, १४४ आदि की भी सत्ता रहती है। इसी मिश्र गुणस्थान पर सम्यक्त्व प्राप्त करने के पश्चात् लौटते १.३९ कर्मप्रकृतियों की भी सत्ता रहती है। इसी तीसरे गुणस्थान पर अनन्तानुबंधी ४ कषाय तथा आहारक चतुष्क के बिना किसी एक आयुष्य के बंधक जीव को १३७ कर्मप्रकृतियाँ सत्ता में पड़ी रहती है ।
४) अविरत सम्यक्त्व नामक चौथे गुणस्थान पर सामान्यरूप से सत्ता में १४८ कर्मप्रकृतियाँ सत्ता में होती है। इसी गुणस्थान पर चरम शरीरी जीवों को जिननाम कर्म बिना सत्ता में १४४ कर्म प्रकृतियाँ रहती हैं । तथा आहारक चतुष्क के बिना १४० रहती हैं। इसमें भी अनन्तानुबंधी ४, मिथ्यात्व, आहारक चतुष्क तथा जिननाम के बिना १३४ कर्मप्रकृतियाँ सत्ता में रहती हैं । यहाँ पर किसी एक आयुष्य के बंधक जीव को दर्शन सप्तक, आहारक चतुष्क तथा जिननाम के बिना सत्ता में १३४ प्रकृतियाँ रहती हैं ।
पाँचवे देशविरति गुणस्थान पर के सत्तास्थान चौथे अविरत सम्यक्दृष्टि गुणस्थान के जितने है ६४ ही होते हैं । छट्ठे प्रमत्त संयत गुणस्थान पर भी चौथे अविरत सम्यक्त्व गुणस्थान की तरह जानना चाहिए। तथा ७ वें अप्रमत्त संयत सातवें गुणस्थान पर भी चौथे अविरत सम्यक्त्व की तरह ही सत्ता स्थान होते हैं । ४, ५, ६ और ७ इन ४ गुणस्थान पर
आध्यात्मिक विकास यात्रा
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