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वहाँ कर्म की प्रकृतियों का प्रमाण सत्ता में ज्यादा रहता है। बंध हेतुओं से बांधने के कारण आत्मप्रदेशों में आए हुए, आत्मा में दीर्घकाल तक चिपके रहने पर सत्ता कहलाती है । यह कर्म के अस्तित्व को सूचित करती है । जब तक सत्ता में से कर्मप्रकृति क्षय नहीं होगी तब तक आगे के गुणस्थानों के सोपानों पर आत्मा चढ नहीं पाएगी । अग्रसर नहीं हो सकेगी । अतः जिस किसी भी जीव को मोक्ष की दिशा में प्रयाण करते हुए आगे बढना हो उसे अनिवार्य रूप से कर्मप्रकृतियों का क्षय करके ही आगे बढना चाहिए ।
गुणस्थानों पर कर्मों का उदय
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सत्ता में पड़े हुए कर्म अपनी-अपनी कालावधि परिपक्व होने पर... वे उदय में आते हैं । और उदय में आकर अपना शुभ या अशुभ विपाक दिखाते हैं । १४ गुणस्थानों के विषय में यहाँ यह देखिए कि किस-किस गुणस्थान पर किस-किस कर्म की मूल और उत्तर कितनी कर्मप्रकृतियों का उदय होता है । १) मिथ्यात्व गुणस्थान पर मूल ८ कर्मों का तथा आहारक द्विक, सम्यक्त्व, मिश्र, मोह, जिन नाम छोडकर ११७ उत्तर प्रकृतियों का उदय होता है । २) सास्वादन गुणस्थान से दसवें सूक्ष्म सम्पराय तक ८ कर्मों का मूलभूत रूप से उदय रहता है । ११ वे उपशान्त मोह गुणस्थान पर भी सत्ता में पडे आठों कर्मों का उदय हो सकता है । १२ वे क्षीणमोह गुणस्थान पर मोहनीय रहित शेष सात कर्मों का उदय रहता है । और १३ वे गुणस्थान पर चारों घाती कर्मों का समूल सर्वथा क्षय हो जाने के पश्चात् मात्र अघाती चार कर्मों का उदय होता है । अन्त में वे भी क्षय हो जाने के पश्चात् १४ वे गुणस्थान अयोगी केवली सोपान पर आठों कर्मों के मूलभूत रूप से सर्वथा क्षय हो जाने के पश्चात् तथा उनकी समस्त उत्तर प्रकृतियों के भी संपूर्ण क्षय हो जाने के कारण अब अंश मात्र भी किसी भी कर्म का उदय नहीं होता है। सत्ता भी नहीं रहती. है । बस, तत्पश्चात् मुक्ति ।
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गुणस्थानों पर कर्म सत्ता
हम निगोद के जीवों से लेकर क्रमशः ऊपर उठते उठते १४ गुणस्थानों पर कहाँ किस गुणस्थान पर कितनी कर्मप्रकृत्तियों की सत्ता रहती है इसका यहाँ विशेष विचार करना है । अव्यवहार राशी निगोद के सूक्ष्मतम जीवों में १०३ कर्मप्रकृतियाँ सत्ता में रहती है । जाति भव्यात्माओं को अनादिकाल से अनन्तकाल तक सत्ता में ९९ कर्मप्रकृतियाँ
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रहती हैं । क्योंकि जातिभव्य जीव सूक्ष्म एकेन्द्रिय प्रायोग्य कर्म ही बांधता है और उसी अवस्था में सदा रहता है। बस, उससे आगे तो गमन ही नहीं है । कर्मबंध ही ज्यादा नहीं
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कर्मक्षय- "संसार की सर्वोत्तम साधना "
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