SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 443
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय १३ का प्रवेश द्वार कर्मक्षय संसार की सर्वोत्तम साधना निर्जरा प्रधान धर्म.. लक्ष्य की दृष्टि से चार प्रकार का धर्म.. विरतिधर्म की विशेषता.. गुणस्थानों पर कर्मबंध.. गुणस्थानों पर कर्मसत्ता.. गुणस्थानों पर कर्मों का उदय और सत्ता गुणस्थानों पर उदीरणा.. काल सापेक्षिक कर्मबंध.. गुणस्थानों पर बंध हेतु.... मिथ्यात्वादि को बंध हेतु कहने का कारण आश्रव और बंध के भेदों में साम्यता.. बंध तत्त्व और बंध हेतु.. wwe गुणस्थानों पर बंधहेतुओं की संभावना.. १३ गुणस्थानों पर लेश्या की स्थिति.. BALLE कषाय और योग के भेद... किस गुणस्थान पर कितने योग होते है?. बंधहेतुओं के गुणस्थानों पर विस्तृत भंग.. स्थानों पर प्रकृतिबंध... कषायादि के कारण प्रमाद्ग्रस्तता. प्रमत्त गुणस्थान की स्थिति.. प्रमादावस्था में ध्यानाभाव.. प्रमाद रहित को ही निश्चल ध्यान. वर्तमानकालिक नाटक. प्रमन के लिए प्रतिक्रमणः.. प्रमत्त गुणस्थानस्थ जीव. .८५० ८५८ .८६० .८६२ .८६३ .८६६ .८६८ .८७० .८७४ .८७७ .८७९ ..८८१ .८८२ ALA ..८८५ CHIN .८८७ ..८८९ .८९० ८९१ .८९४ .८९६ ८९७ ९०१ ९१९ ११०
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy