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गहरे खड्डे में डाल देंगे। मोहनीय कर्म में किनका क्षय किस प्रकार के धर्म से होता है उसका नाम निर्देश करता हूँ।
१) मिथ्यात्व मोहनीय का क्षय करने के लिए सम्यग् दर्शन-सच्ची श्रद्धा के धर्म की अनिवार्य रूप से आवश्यकता है।
२) क्रोधादि कषाय मोहनीय की कर्म प्रकृतियों का क्षय करने के लिए.... क्षमा, समता, नम्रता, सरलता, संतोष-निर्लोभता आदि के गुणात्मक धर्म की आवश्यकता है। गुणोपासना सर्वश्रेष्ठ धर्म है। _____३) हास्यादि नोकषाय मोहनीय की कर्म प्रकृतियों का क्षय करने के लिए भी गंभीरता आदि गुणों की उपासना जरूरी है।
४) वेद मोहनीय कर्म की प्रकृति का क्षय करने के लिए... वासना-विकारों से बचने के लिए ब्रह्मचर्य का पालन करना सर्वश्रेष्ठ धर्म है। . __ स्थूल रूप से विचारणा करने पर मोहनीय कर्म के ४ विभागों के क्षयार्थ मुख्य चार प्रकारों के धर्मों की व्यवस्था सर्वोत्तम है । इस तरह मोहनीय कर्म का विभागानुसार क्षय करते करते गुणस्थान के सोपानों पर क्रमशः चढना...आगे बढना ही आध्यात्मिक विकास है। तीर्थों की यात्रा करते करते.... उस उस गुणस्थान के विषयों का आस्वाद प्राप्त करते करते आगे बढ़ना चाहिए । यही गुणस्थानों पर आरुढ होने के परमानन्द की अनुभूती का अनोखा अवसर है। यह साधना की अनोखी प्रक्रिया है। विशेष विस्तार से आठवें गुणस्थान से आगे की प्रक्रिया में समझने का प्रयल करेंगे।
॥ इति शुभं भवतु सर्वेषाम् ॥
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आध्यात्मिक विकास यात्रा