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दूसरी तरफ दर्शनावरणीय कर्म जो ज्ञानावरणीय कर्म का साथ देनेवाला है, उसके साथ चलनेवाला है उसने ज्ञानेन्द्रियों पर विकलता शक्ति क्षीणता-दुर्बलता लाकर और अधूरे में पूरापन....जीवात्मा को नींद में डाल दिया। गाढ निद्रा में कुंभकर्ण जैसी स्थिति कर दी। तीसरी स्थिती अंतराय कर्म ने खराब कर दी। दान-लाभादि में, मिलने और लेने देने के क्षेत्रमें, भोगने तथा खाने-पीने आदि के क्षेत्र में प्रत्येक जगह विघ्न खडे कर दिये । इतना ही नहीं शक्ति हीन बनाकर जीव को दुर्बल-उत्साह उमंग रहित निरुत्साहित जीवन कर दिया।
सात कर्मों की बात तो हो गई। अब आप सोचिए... अन्य जितने भी विषय शेष बचे हैं वे सब मोहनीय कर्म पूरे कर देता है । मोहनीय कर्म अपनी पूरी पक्कड जीव पर जमाकर जीव की पूरी शकल ही बदल देता है। और उसे विषयी-कषायी-रागी-द्वेषी-क्रोधी-अभिमानी, मायावी, कपटी, लोभी-ईष्यालु.... .मिथ्यात्वी-अश्रद्धालु स्त्री लंपट-कामी-पुरुष कामी, नपुंसक-जोकर जैसा बनाना...
आदि अनेक तरीकों से स्वभावादि बदलकर ... जीवात्मा की हालत विकृत कर दी। मोहनीय कर्म शराबी जैसा है। शराब के नशे की तरह काम करता है । अन्य सभी कर्म थोडा-थोडा विभाग संभालते थे तब मोहनीय कर्म ने मुख्य विभाग संभाला और स्वभाव-स्वरूप श्रद्धा आदि सब कुछ खतम करके जीव की स्थिति संसार में सर्कस के जोकर के जैसी कर दी । संसार के बीच लाकर जीव को ऐसा नाटक करनेवाला नृत्यकार बना दिया कि जिसकी हम कल्पना ही नहीं कर सकते हैं।
किसका क्षय पहले करें?
. इन कर्मों का ऐसा स्वरूप समझने के बाद आप स्वयं ही निर्णय कर सकेंगे कि किस कर्म का क्षय पहले करना चाहिए? किस कर्म को खपाने की पहले प्राथमिकता देनी चाहिए? शायद सभी इस बात में एक साथ एक मत - एक विचार से सहमत होंगे कि . ..... पहले मोहनीय कर्म का ही क्षय करना चाहिए। हमारे घर में घुसा हुआ खतरनाक चोर कौन सा है? ज्यादा नुकसान करनेवाला कौन है ? अधिक से अधिक नुकसान करनेवाला जो हो उसका क्षय पहले करना चाहिए, बिल्कुल सही बात है । जैसे एक राजा को जीत लेने मात्र से पूरी सेना, पूरा राज्य जीता जा सकता है । ठीक उसी तरह पहले कर्मों के राजा मोहनीय कर्म को जीतने से अन्य सभी कर्म आसानी से जीते जा सकते हैं।
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आध्यात्मिक विकास यात्रा