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१८ पापस्थानों में विभाजन
१८ पापस्थानों में छठे क्रोध से लेकर ११ वें द्वेष तक के ६ पापों को भाव (पाप) कर्म के रूप में गिने हैं । ये पाप रूप भी है और कर्म रूप भी है। कर्म के उदय के रूप में सामने आते हैं। और पुनः वैसी प्रवृत्ति कराते हैं तब नए कर्म भी अवश्य बंधाते हैं । अतः मोहनीय कर्म की प्रकृति, और प्रकृति से पुनः प्रवृत्ति.... इस तरह संसार अनादि काल से चला आ रहा है और भविष्य में भी अनन्तकाल तक चलता रहेगा।
इन ६ पाप प्रवृत्तियों एवं प्रकृतियों को दो विभाग में विभक्त करने पर... क्रोध, मान और द्वेष एक ग्रूप में आते हैं। तथा माया-लोभ- और राग ये तीनों प्रवृत्ति एक ग्रूप में समाती है । दोनों प्रकार की प्रवृत्तियाँ अपना-अपना काम करती हैं । सुख प्राप्ति के लिए पुरुषार्थ करती हैं । दोनों ने अपना लक्ष्य सुख प्राप्ति का बना लिया है। एक दूसरे की प्रवृत्ति में सहायता करते हैं । राग अक्सर द्वेष में बदलता हुआ दिखाई जरूर देता है। जबकि द्वेष पुनः बदलकर राग में आया हुआ बहुत कम देखा जाता है । उदाहरण के लिए पति-पत्नी का राग-प्रेम कुछ वर्षों बाद द्वेष में बदलता हुआ जरूर दिखाई देता है। आखिर घटस्फोट के लिए कोर्ट-कचेरियों में चक्कर लगाते हुए देखे जाते हैं। जबकि द्वेष के बाद राग में (प्रेम में) आनेवाले मात्रा में बड़ी मुश्किल से नाम मात्र भी देखें जाते होंगे। बस, इसी तरह संसार चलता रहता है। ___यह संसार एक गाडी के जैसा है । और मोहनीय कर्म रूपी चार पहिये हैं। दो आगे
और दो पीछे । आगे के दो पहियों में एक तो मिथ्यात्व का और दूसरा हास्यादि षट्क का। बस, पिछले दो पहियों में एक विषय का और दूसरा कषाय का। आगे के दो पहिये दिशा निर्देश करते हैं। दिशा में बदलाव भी लाते हैं। जबकि पीछे के दोनों पहिये गति प्रदान करते हैं । मिथ्यात्व जीवन की दिशा ही बदल देता है। सर्वथा मोड देता है। और हास्यादि भी सर्वथा दिशा बदलकर स्वभाव बदल देते हैं। मिथ्यात्व के पीछे कषाय कारणभूत सहायक बनते हैं । जबकि हास्यादि६ नोकषाय विषय के निर्देशक कषायों की वृद्धि से मिथ्यात्व की वृद्धि तथा मिथ्यात्व की वृद्धि से कषाय की वृद्धि इस तरह अन्योन्य रूप में बढावा देनेवाले हैं। इस तरह चारों पहिये मिलकर गाडी को चलाते रहते हैं । बस, इस तरह संसार की गाडी चलती रहती है। गतिप्रदान कारकता तथा दिशानिर्देश की कारणता ये दोनों संसार की गाडी को चलाते रहते हैं। ऐसा है संसार का स्वरूप ।
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आध्यात्मिक विकास यात्रा