________________
उपज मन में होती है । यह मन में रहती है । प्रवृत्ति बाहरी है । जो काया की प्राधान्यता से होती है । जब वृत्ति की जडे अन्तर मन की गहराई में होती है। वहीं से पाप की शुरुआत होती है। जैसे नारियल का वृक्ष ४० फीट उँचा-लम्बा है परन्तु उसकी जडें-मूल जो जमीन में है वे कितनी गहराई में है। भले ही काफी कम हो । परन्तु पानी का सिंचन वहीं जडों में ही किया जाता है । और परिणाम स्वरूप पूरे वृक्ष के प्रत्येक भाग में हर-पत्ते-पत्ते में सर्वत्र पहुंच जाता है । ठीक इसी तरह वृत्ति जडों की तरह मन की गहराई में रहती है। वहीं से पापों की शुरुआत होती है। अतः पाप की प्रवृत्ति सुधारने के लिए सामनेवाले जीवों को मारने-पीटने की अपेक्षा उसके अन्तस्थ मन की गहराई तक असर कर सके. ... हम उसके मन की गहराई तक पहुँच सकें ऐसा माध्यम अपनाकर उपाय करने से ही सफलता प्राप्त हो सकती है। ... द्वेष-दुर्भाव में मन के दरवाजे दूसरों के लिए बन्द रहते हैं। जबकि राग-प्रेम के सद्भाव में मन के द्वार खुल्ले रहते हैं। ऐसे प्रेमभाव से, हित बुद्धि से खूब अच्छी तरह समझाने पर शत्रु भी मित्र बन सकता है । दुश्मन भी बदल सकता है । इसके लिए वाणी ही ऐसी है जो मन की गहराई तक पहुँच सकती है। और असरकारक वाणी ही वहाँ जाकर असर कर सकती है । अन्यथा संसार की कोई औषधि आदि ऐसी नहीं है जो उस अचेतन मन की गहराई में पहुंचकर असर कर सकें । इसी कारण तीर्थंकर परमात्मा भगवान महावीर आदि ने... अत्यन्त करुणाभाव, वात्सल्यभाव से सर्वथा राग-द्वेष रहित वीतरागभाव से
और अपने केवलज्ञान के योग से जानकर सत्य को चरम स्वरूप को जीवों के सामने प्रगट किया। वाणी के व्यवहार से जीवों को समझाया। और परिणाम स्वरूप अनेक पापात्माएं भी उनके उपदेश से संसार सागर तैर गई। भाव पाप ही कर्मरूप है
१८ पापस्थानों में यदि विभाजन किया जाय तो कुछ पाप द्रव्य पाप कहलाएंगे और कुछ भाव पाप गिने जाते हैं । द्रव्यों के संबंध की, या बाहरी संबंध-संयोग की प्राधान्यता जिसमें रहती है वह वस्तु निमित्तक द्रव्य पाप है। हिंसा-झूठ-चोरी-मैथुनसेवनपरिग्रहादि में अन्य की निमित्तता, वस्तु की स्थिति कारणभूत है । जबकि क्रोध, मान, माया, लोभ-राग-द्वेषादि भाव पाप हैं, आभ्यन्तर कक्षा के पाप हैं । शायद किसी भी वस्तु का कोई भी निमित्त मिले या न भी मिले तो भी राग-द्वेष-कषायादि आसानी से हो सकते हैं । मन ही मन कषाय हो सकते हैं । मानसिक कषाय करते हुए मन में ही पूंटनेवाले बहुत
८३०
आध्यात्मिक विकास यात्रा