________________
बडा उपकार होगा सबका-सब पर । और यदि इससे विपरीत यदि मनोरंजन मौज-शौक के लिए मोह-ममत्व-माया बढाने के लिए ही किया तो सबका सब पर बहुत बड़ा भारी अपकार होगा। भावि में बहुत बडा अनर्थ होगा। पापाश्रवों के सेवन से पुन: मोहनीय कर्म की वृद्धि
१८ पापस्थानों में १२ से १८ नंबर तक के ७ पाप जो वाचिक कायिक ज्यादा है। ऐसे पापों में १२ वे कलह, के पाप में - राग और द्वेष दोनों शामिल हैं । झगडे में वैसे भी द्वेष की, क्रोध की मात्रा ही प्रतिशत में ज्यादा होती है । लेकिन पति-पत्नी के मीठे झगडे राग की तीव्रता में होते हैं । झगडे का मूल तो राग-द्वेष के घर में ही है । इसकी निपज मानसिक रूप से मन में से ही होती है। १३ वें अभ्याख्यान में आक्षेप-आरोप लगाने की वृत्ति है। यह भी बिना कषाय के संभव नहीं है। दोनों पाप ज्यादा बोलनेवाले हैं। यदि मौन रहने का उपाय अपनाया जाय तो दोनों पापों से आसानी से बचा जा सकता है। नहीं तो फिर पुनः पाप करते रहिए और पुनः कर्म बांधते रहिए।
१४ वे पैशून्य के पाप में मायावी वृत्ति ज्यादा है । यह माया की बहुलतावाला पाप चुगली खाने की प्रवृत्ति कराता है । आखिर बिना कषाय के इस पाप के लिए जीना मुश्किल है। सोचिए ऐसी नारदी वृत्ति के इस पाप में जीव आठों कर्म नहीं बांधेगा तो क्या करेगा? मोहनीय कर्म की प्रवृत्ति में पुनः मोहनीय कर्म बांधना, और पुनः उसका उदय होना, तथा उदय काल में पुनः वैसी हरकतें करना, पुनः वैसी प्रवृत्ति करके फिर कर्म बांधते रहना... फिर उदय... फिर वैसी प्रवृत्ति .... फिर कर्म, इस तरह अनेक जन्मों तक कर्म ग्रसित अवस्था में आत्मा संसार चक्र में परिभ्रमण करती ही रहती है। इससे कर्म का स्वभाव आदत बन जाता है। वैसे ही पापों को पुनः-पुनः करते रहने से वृत्ति ही वैसी बन जाती है। बस, फिर उसी प्रकार के स्वभाव बार-बार उस पाप को कराते ही रहते हैं । पाप की प्रवृत्ति जितनी ज्यादा खतरनाक नहीं है उससे अनेक गुनी ज्यादा पाप की वृत्ति जो अन्दर पडी है वह हजार गुनी खतरनाक है। एक पाप की प्रवृत्ति जितने ज्यादा नए पाप नहीं कराएगी उससे हजार गुने ज्यादा पाप-और कर्म उसकी वृत्ति-स्वभाव-आदत ज्यादा कराएगी । बच्चे ने अब चोरी नहीं की इसमें राजी होने जैसा नहीं है, परन्तु उसकी आदत, अन्दर से वृत्ति सुधरी की नहीं....जब अन्दर की वृत्ति बदल जाय तब समझिए कि बच्चा सुधर गया है । तब राजी होने जैसा है । वृत्ति शब्द के आगे 'मन' शब्द जोडने से “मनोवृत्ति" शब्द बनता है । यह शब्द सूचित करता है कि.... वृत्ति का केन्द्रस्थान मन है । वृत्ति की
आत्मशक्ति का प्रगटीकरण
८२९