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आधीन - पराधीन बना दिया है। अतः पाँचो इन्द्रियों से अब ऐसी स्थिति में - ज्ञान ज्यादा प्राप्त होने के बदले - मोह ही ज्यादा बढता है । जीव मोह की पुष्टि ही ज्यादा करता है । अतः ज्ञान के लिए उपयोग ज्यादा करने न देकर मोहनीय सब कुछ अपने उपयोग के लिए करता है । बस, अब वृक्ष देखकर ज्ञान बढाने के बदले वह खाने, तोडने तथा प्रियतमा को खिलाने आदि की ज्यादा इच्छा रखता है । अब कपडे पहनना आदि शरीर की लाज-मर्यादा ढकने के बजाय .. मोह की तीव्रता के साथ राग-भाव में पहनना है । वह भी ऐसी फैशन के कट के पहनना है कि जिससे हेतु सर्वथा सिद्ध न हो ऊपर से अंगोपांगो का प्रदर्शन हो और मोहकता बढाई जा सके । शरीर को ऐसा सजाकर मोहक बनाया जाय कि जिससे शरीर राजी न हो परन्तु मन खूब ज्यादा राजी हो । और दूसरे देखनेवाले को भी ज्यादा राजी करें । रागी बनाएँ । उत्तेजक एवं मोहक निमित्त खडा करके आकर्षण पैदा करें ।
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कर्णेन्द्रिय से शब्द - ध्वनि सुनकर ज्ञान बढाने के बजाय अब जीव मोहवश गीत-संगीत ऐसे सुनना चाहता है जिससे ज्ञान के बजाय अन्दर मोह की ही वृद्धि हो । मोह पुष्ट होता है । उसमें भी जीव बहुत ज्यादा राजी होता है । आनंदित होता है । इसी मोह की माया का आज ऐसा प्रभाव है कि जीव व्याख्यानवाणी श्रवण करने के बजाय फिल्मी गीत-संगीत को प्रमाण में ज्यादा पसंद करता है। टी.वी. देखने की प्रक्रिया आँख की है। परंतु जीव टी.वी. देखकर ज्ञान ज्यादा प्राप्त करने के बदले मोहक - अश्लील, आकर्षक दृश्यों को ज्यादा देखकर मात्र अपनी मोहवृद्धि करने का ही काम करता है । इसीलिए परिणाम स्वरूप आज के जमाने में टी.वी. की विकृतियाँ सर्वत्र व्यापक रूप से बढती ही जा रही है । यहाँ तक स्थिति विकृत हो चुकी है कि टी.वी. देखकर पागल होने की संख्या दिन प्रतिदिन विदेशों में भी बढती ही जा रही है। टी.वी. देखकर बच्चों का • मन विकृतियों - वासनाओं से भरता जा रहा है, और समाज में - खून - हिंसा - हत्या, बलात्कार - दुराचार - व्यभिचारादि सब प्रकार के पापों का प्रमाण काफी ज्यादा बढता ही
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रहा है। टी.वी. आने के पहले जो प्रमाण १०% भी नहीं था वह आज टी.वी. आने के बाद ५०% से ६०% बढ गया है। और दिन प्रतिदिन बढता ही जा रहा है। तथा विदेशी संस्कृति का विकृत स्वरूप जो जो आर्य संस्कृति की सुसंस्कृत सभ्य प्रजा को दिखाया जा रहा है । तथा उसमें भी ज्यादा से ज्यादा विकृतियाँ दिखाकर प्रजा के मानस को विकृत किया जा रहा है। सच देखा जाय तो यह आर्य संस्कृति पर बहुत बड़ा भारी आक्रमण है । वज्राघात समान कुठाराघात है । यह आर्यावर्त भारत की सभ्यता और
'आत्मशक्ति का प्रगटीकरण
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