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ध्राणन्द्रय
PIPASHRAMMOHANA
ज्ञान प्राप्ति की प्रक्रिया
इस तरह पाँचो इन्द्रियाँ बिल्कुल ज्ञान प्राप्त करानेवाली
ज्ञानेन्द्रियाँ हैं। बाहर के पदार्थों को रसन्द्रिय
देख-सूनादि कर...आत्मा तक ज्ञान पहुँचाने का काम करती है। इस प्रक्रिया में इन्द्रियाँ बाहरी पदार्थ का स्पर्श-रसादि-रूप-रंगादि-शब्दादि का ज्ञान लाकर पहले मन को भेजती
है । मन आत्मा के साथ जुड़ा हुआ है। । चक्ष इन्द्रिय । श्रवणन्द्रिय
अतः मन उस ज्ञान को आत्मा के पास
भेजता है । आत्मा में ज्ञान है । वह भी ज्ञानावरणीय कर्म से आवृत्त है । उसमें आवरण के कारण मति-बुद्धि का ज्ञान है । याद रखिए, बुद्धि या ज्ञान आत्मा से अलग कोई स्वतन्त्र द्रव्य के रूप में नहीं है । परन्तु आत्मा के ही ज्ञानरूप में है । अतः मन बुद्धि के पास भेजता है । बुद्धि आए हुए ज्ञान का विश्लेषण करती है । उदाहरण के लिए... आँख से किसी वृक्ष को देखा- आँख ने उसका सारा रूप-रंगादि-मन के पास भेज दिया-मन इच्छादि द्वारा विचार करता है । वहाँ से बुद्धि के पास आत्मा में गया ज्ञान अब वहाँ पूर्ण रूप से विश्लेषण होगा-कि यह वृक्ष क्या है ? किसका है ? इसके फलादि कैसे हैं ? जानकारी प्राप्त करने की यह ज्ञान प्रक्रिया है। (Perseption theory, the theory of knowledge). ज्ञान प्राप्त होने की प्रक्रिया है।
यहाँ तक तो कोई आपत्ति ही नहीं है । बहुत ही अच्छि उपयोगी हैं यह ज्ञान की प्रक्रिया। संसार के छोटे-बड़े सभी जीवों को चाहिए यह प्रक्रिया। अनिवार्य रूप से उपयोगी एवं आवश्यक है प्रत्येक जीवों के लिए। ज्ञान के बदले मोहवृद्धि___ यद्यपि इन्द्रियाँ ज्ञानेन्द्रियाँ हैं । ज्ञान के उपयोग के लिए कार्य करती हुई उपयोगी तथा आवश्यक हैं । परन्तु प्रबल मोहनीय कर्म इतना ज्यादा सबल एवं सक्षम है कि पाँचों इन्द्रियों को ज्ञान का काम करने देने के बदले अपनी मोहवृद्धि ही कराने का काम कराता है । मोहनीय कर्म ने ज्ञान का गला घोंट दिया है । दबोच दिया है और अपने वश में करके
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आध्यात्मिक विकास यात्रा