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________________ प्राणेन्द्रिय रसनेन्द्रिय स्पशेन्द्रिय है। बिना शरीर के कोई जीव संसार में जी ही नहीं सकता है । रह ही नहीं सकता है। बिना शरीर के जीव अशरीरी हो जाता है। अशरीरी यह अवस्था एक मात्र मोक्ष में ही होती है। श्रवणेन्द्रिय मुक्ति के सिवाय संसार में कहीं कभी भी संभव ही नहीं है । शरीर यह संसार का हेतु है । मोह का कारण है । शरीर के साथ इन्द्रियाँ जुडी हुई है । पाँचो इन्द्रियाँ शरीर के खिडकी दरवाजे के रूप में है । इन्द्रियाँ जीवों को स्व-स्व कर्मानुसार कम-ज्यादा प्रमाण में मिलती हैं । बांधे हुए नामकर्म की इन्द्रिय नामकर्म की प्रकृति के कारण जीवों को इन्द्रियाँ प्राप्त होती है। दर्शनावरणीय कर्म का विशेष उदय इन्द्रियों की विकलता भी दिलाता है। साथ ही ज्ञानावरणीय कर्म भी अपना भाग दिखाता है और इन्द्रियों की क्षीणता आदि में हाथ बटाँता है । आखिर इन्द्रियाँ आत्मा तक ज्ञान पहुँचाने का काम करती है । अतः ये पाँचों इन्द्रियाँ ज्ञानेन्द्रियाँ कहलाती है । आत्मा को इनकी बहुत आवश्यकता है । बिना इन्द्रियों के जीना जीव के लिए मुश्किल है। क्योंकि पाँचो इन्द्रियों से २३ विषयों का ज्ञान प्राप्त होता है। १) स्पर्शेन्द्रिय (चमडी) से ठंडा-गरमादि ८ प्रकार के स्पर्शों का ज्ञान होता है । चमडीवाले जीव एकेन्द्रिय कहलाते हैं । २) रसनेन्द्रिय- जीभवालों को खट्टा-मीठादि ५ प्रकार के रसों का ज्ञान होता है। ऐसे जीव दोइन्द्रिय-कृमी-जीवाणु आदि कहलाते हैं। ३) घाणेन्द्रिय (नासिका) वाले चीटि-मकोडे-खटमलादि जीव तेइन्द्रिय हैं जो सुगंध-दुर्गंधादि घ्राण-गंध का ज्ञान प्राप्त करता है । ४) चौथी चक्षुइन्द्रिय हैं (आँख) इससे जीव काला-लाल-पीलादि-पाँचों प्रकार का वर्ण-रूपरंग ग्रहण करता है । ऐसे मक्खी -मच्छर-भौरे-तीडादि चउरिन्द्रिय जीव कहलाते हैं। तथा अन्तिम पाँचवी इन्द्रिय-श्रवणेन्द्रिय—(कान) है। आवाज-शब्द-ध्वनी सुनकर आत्मा तक ज्ञान पहुँचानेवाली यह पाँचवी महत्व की इन्द्रिय हैं । हाथी, घोडे, बैल, बकरी, मनुष्य, नारकी, देवादि सभी पंचेन्द्रिय जीवों को यह कर्णेन्द्रिय प्राप्त होती है। आत्मशक्ति का प्रगटीकरण
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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