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भव्यत्वपने की छाप का आधार मात्र मोक्ष को मानना इतना ही नहीं सबकी मुक्ती साथ साथ अपनी मुक्ति भी अनिवार्य रूप से मानने पर है। मोक्ष के ही ये अंगभूत तत्त्व हैं । अतः सबके साथ मोक्षविषयक श्रद्धा के आधार पर भव्यत्व आधारित है ।
सम्यक्त्व और भव्यत्व
“भव्यत्व” यह कर्मोदयजन्य नहीं अपितु पारिणामिक भाव से नित्य ही आत्मा के साथ रहता है संसारी अवस्था में । फिर भी यह भव्यत्व अनादि - सान्त है । क्योंकि सिद्ध होने के बाद जब सिद्ध कहे जाते हैं तब कोई भवी - आदि नहीं कहेगा । कुमारिका कन्या जब शादी के बाद माँ बन जाती है फिर कन्यापन कहाँ गया ? अब वह अवस्थाविशेष से कन्या नहीं अपितु माँ कहलाती हैं। कन्यापन गया या नहीं ? का प्रश्न ही खड़ा नहीं होता है ... परन्तु कन्यापने के दिन बदल गए, अवस्था विशेष के बदल जाने की स्थिति जैसा है। अब मातृत्व का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। ठीक इसी तरह भव्यं जब सिद्ध बन जाता है फिर भव्यत्व सिद्ध की स्थिति में मिल गया । विलीन हो गया । भव्यत्व का अलग - स्वतंत्र अस्तित्व नहीं रहता है ।
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भव्यत्वपने को पाने के लिए आपको कोई पुरुषार्थ करना नहीं है । इसी तरह अभव्यत्वपना भी पारिणामिक भाव के कारण सदा अभवी भी वैसा ही रहता है । यह अभवीपना अनादि - अनन्तकालीन स्थितिवाला है, क्योंकि अभवी कभी भी सिद्ध बननेवाला ही नहीं है । इसलिए अभव्य और जातिभव्य दोनों का अभव्यपना और जातिभव्यपना ये दोनों अनादि - अनन्तकालीन स्थितिवाले हैं। इनमें कभी भी परिवर्तन संभव ही नहीं है, क्योंकि ये दोनों न तो मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं और न ही सम्यक्त्व प्राप्त कर सकते हैं । सम्यक्त्व एक मात्र भव्यात्मा ही प्राप्त कर सकती हैं। इसलिए जो जो भवि है वह अवश्य मोक्ष में जाएगा ही, ऐसा नहीं कह सकते हैं। परन्तु जो जो मोक्ष में जाते हैं वे सभी भव्य जरूर कहलाते हैं। इसका हम पहले विचार कर चुके हैं। प्रस्तुत अनुसंधान में सम्यक्त्व के साथ विचारणा करें। कि जो जो भवी है वह वह सम्यक्त्वी है ? या जो जो सम्यक्त्व है वह भवी है ? इस व्याप्ति के साथ अनिवार्य रूप से सम्यक्त्वी-भवी के साथ जरूर अविनाभाव संबंध है। सम्यक्त्व जब भी होगा तब भवी आत्मा को ही होगा । भवी के सिवाय अभवी को कभी भी सम्यक्त्व हुआ नहीं और होता भी नहीं है और कदापि होगा भी नहीं । अतः सम्यक्त्वी जरूर भवी कहलाएगा लेकिन भवी सभी सम्यक्त्वी नहीं कहलाएंगे । क्योंकि अनन्त भवी हैं। सभी कहाँ सम्यक्त्व पा चुके हैं ? या सभी कहाँ पा
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आध्यात्मिक विकास यात्रा