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आश्रव और बंध के बीच समानता
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दूध-शक्कर के दृष्टांत की तरह, हम जो कुछ खाते-पीते हैं । उसमें ली जाती रोटी - दाल-चावल - सब्जी - पानी - आदि पेट में डालना - भरना यह आश्रव रूप 1 फिर शरीर में पाचन होकर एकरस बनकर खून में घुल-मिल जाना यह बंध है। आश्रव हुए बिना बंध कैसे होगा ? इसलिए बंध के पहले आश्रव - कार्मण वर्गणा के पुद्गल परमाणुओं का आगमन होना जरूरी है। ऐसा आश्रव क्रियात्मक है । नवतत्त्व में आश्रव के भेद दर्शाए गए हैं ।
इन्दिय - कषाय- अव्वय - जोगा - पंच-च-पंच - तिन्नी कमा । किरियाओ पणवीस, इमाउ ताओ अणुक्कमसो ||
इन्द्रियाश्रव–५, + कषायाश्रव - ४, + अव्रताश्रव - ५, + योगाश्रव - ३, + और क्रियाश्रव— २५ = ४२ प्रकार के आश्रव बताए गए हैं। इन ४२ रास्तों से आत्मा में कार्मण वर्गणा के पुद्गल परमाणु आते हैं। प्रवेश करते हैं। आश्रव के ये रास्ते हैं । इन ४२ प्रकार की क्रिया प्रवृत्ति से आत्मा में आए हुए कार्मण वर्गणा के पुद्गल परमाणु फिर घुलकर एकरस बनेंगे वह बंध कहलाएगा। (विशद वर्णन तीसरे अध्याय में से सचित्र पढिए)
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बंध और बंधहेतु
कर्म बंध और बंध के हेतुओं में अन्तर है। कर्म बंध ४ प्रकार का है । बंधो च विगप्पो अ ।
पयइ - ठिई - अणुभाग, पएस भेएहिं नायव्वो ।
-१ प्रकृति बंध, २ स्थिति बंध, ३ अनुभाग (रस) बंध, और ४ था प्रदेश बंध । ये चार प्रकार के बंध हैं । चारों बंधों की व्याख्या देते हुए आगे की गाथा में स्पष्टीकरण किया है—
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पंयइ सहावो वुत्तो, ठिइ कालावहारणं । अणुभागोरस ओ, एसो दल संचओ ॥
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१) कर्म के स्वभाव को प्रकृति बंध कहते हैं । २) काल अवधि का निर्धारण यह स्थिति बंध है । ३) रस को अनुभाग बंध, और ४) कार्मण वर्गणा के दलिकों प्रदेशों के संचय को प्रदेश बंध कहते हैं । यह चौथा प्रदेशबंध जिसमें दल संचय होता है । यह आश्रव के जैसा है । आश्रव की समानता इस प्रदेश बंध के जैसी है। आत्म प्रदेशों के
आध्यात्मिक विकास यात्रा