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तथा परिणाम स्वरूप विभाव (विकृत भाव) पैदा करता है । बनाता है । बढाता है । यह स्वरूप अच्छी तरह समझ लेना चाहिए और ऐसे मोहनीय कर्म का क्षय करने की, मोहनीय की चुंगुल से अपनी आत्मा को मुक्त कराने की भीष्म प्रतिज्ञा करनी चाहिए। और अन्तिम श्वास तक मोहनीय कर्म के सामने योद्धा बनकर लडना चाहिए। तभी मुक्ति हाथ में होगी अन्यथा करोडों कोस दूर रहेगी ।
स्वभाव रमणता और विभाव भ्रमणता
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अपनी आत्मा के क्षमा-समतादि रवभावों में सदा रहना, यह जागृत सावधान साधक का लक्षण है । स्वभाव दशा में रमण करना, यही आत्मा का मुख्य धर्म है । इसीलिए भगवान महावीर ने सामायिक, पौषध, प्रतिक्रमण - चारित्रादि चारित्राचार का धर्म बताया है । संपूर्णरूप से मोहनीय कर्म का क्षय (समूल नाश) करने लिए चारित्राचार, तपाचार आदि के धर्म की संयोजना, व्यवस्था की है। सचमुच यह इतना प्रबल - सक्षम धर्म है कि मोहनीय कर्म की सभी २८ प्रकृतियों की सेना का पूरा सफाया करके ही रहता है । जैसा कर्म है वैसा तदनुरूप धर्म बताया है । बात भी सही है । धर्म कर्म का क्षय करने के अनुरूप ही होना चाहिए। दवाई रोग का क्षय करने के अनुकूल ही होनी चाहिए। साबुन मैल को धोने में सक्षम होना ही चाहिए। ठीक उसी तरह धर्म कर्म का क्षय करने के अनुरूप और अनुकूल - सक्षम - प्रबल कक्षा का ही होना चाहिए ।
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स्वभाव रमणता, अपने क्षमा-समतादि गुणों में मस्ति यही धर्म है। और क्रोधादि की विभाव दशा में रमणता रखने से संसार की भ्रमणता सदा बढती ही रहती है । परन्तु मोहवश जीव उल्टा विपरीत चलता है। वह स्वभाव के बदले विभाव में रमणता करता है, रखता है । और विभाव क्रोधादि को छोडने के बदले और गाढ पकडकर रखता है । जीव को ऐसी भ्रान्ति भ्रमणा हो गई है कि बिना क्रोधादि कषाय किये संसार में जी ही नहीं सकते हैं । इसलिए क्रोध करके किसी पर अपनी धाक जमाता है । आँखे लाल कर गुस्सा दिखाकर किसी के पास अपना काम कराता है। क्रोधावेश में औगबबूला होकर किसी नोकरादि पर अपना रोफ जमाता है। किसीको परास्त कर.. अपने मन को राजी करता
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। मान-पान, सत्ता–प्रतिष्ठा, यश-कीर्ति प्राप्त करके अपने मन की संतुष्टि में जीव आनन्द पाता है । मन की पुष्टि में राजी और धारणानुसार मन की पुष्टि - संतुष्टि न होने पर नाराजी शुरु हो जाती है। इसी तरह माया लोभ के भी व्यवहार सेंकडों प्रकार के हैं । बस, कषाय किया और अपनी धारणा योजना पूरी हुई कि जीव राजी होता है । कषायों से काम कराके जीव उसमें बडापन मानता है ।
आध्यात्मिक विकास यात्रा
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