________________
- जो अतीत–बीते हुए भूतकाल में सिद्ध हुए हैं, मोक्ष में गए हैं, जो भविष्य-अनागत काल में मोक्ष में जाएंगे, और संप्रति वर्तमान काल में आज भी जो मोक्ष में जा रहे हैं उन सब को मन-वचन-काया के त्रिविध योग से वंदना करता हूँ। तीर्थक्षेत्र-सिद्धक्षेत्र
जिनेश्वर परमात्मा के च्यवन-जन्म-दीक्षा-केवलज्ञान और निर्वाण ऐसे पाँच कल्याणक होते हैं। इन पाँचों कल्याणकों में पाँचवा अन्तिम निर्वाण कल्याणक प्रभु के मोक्षगमन की अवस्था का सूचक है । मोक्ष में जाना अर्थात् सदा के लिए शरीर का त्याग करके आत्मा का सिद्ध बनना-मुक्त बनना । अन्तिम समय में परमात्मा ने अपने देह का जिस भूमिस्थान पर से त्याग किया वह भूमिस्थान सिद्धक्षेत्र-तीर्थक्षेत्र के रूप में प्रसिद्ध हआ। आदिनाथ भगवान से लेकर महावीरस्वामी भगवान तक के वर्तमान चौबीशी के २४ तीर्थंकर भगवान मुख्य ५ तीर्थभूमियों में से सिद्ध हुए हैं। मुख्यरूप से सम्मेतशिखरजी तीर्थक्षेत्र से २० तीर्थंकर सिद्धि गति को पाए हैं। भ. नेमिनाथ गिरनार-रैवताचल पर्वत पर से मोक्ष में गए हैं । चम्पापुरी नगरी की अपनी ही जन्मभूमि में से श्री वासुपूज्यस्वामी भगवान मोक्ष में गए हैं। पावापुरी नगरी में से दीपावली की अमावास्या की रात्रि को देह छोडकर महावीरस्वामि ने निर्वाणपद को पाया। और प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगवान अष्टापद तीर्थक्षेत्र से निर्वाण पद को पाए । अष्टापद तीर्थ के हिमालय पर्वत पर कैलाश पर होने के प्रमाण ज्यादा मिलते हैं । इन पाँचों निर्वाण भूमियों से जो और जितने मोक्ष में गए उन सबसे ज्यादा आत्माएं सौराष्ट्र (गुजरात) के सुप्रसिद्ध सिद्धाचल-सिद्धक्षेत्र पालीताणा से मोक्ष में गई हैं। भले ही वर्तमान चौबीशी के एक भी तीर्थंकर भगवान यहाँ से मोक्ष नहीं पाए हैं परन्तु अन्य गणधर पुंडरीक स्वामी आदि से लगाकर अनन्त साधु-साध्वीजी मोक्ष पाए हैं। मुख्यरूप से पुंडरीक स्वामीजी, द्राविड-वारिखिल्लजी, नमि-विनमि पाण्डवादि का मोक्षगमन करोडों की संख्या में हुआ है ।मोक्ष पाए हैं। अन्य नारदजी रामचन्द्रजी आदि की संख्या लाखों के साथ में मोक्ष पाने की है। अतः स्पष्ट कहा जाता है कि... “कांकरे कांकरे अनन्ता सिद्धा" की कहावत सुप्रसिद्ध ही है। इसलिए इस सिद्धाचल-सिद्धक्षेत्र के लिए कहा जाता है कि- “पापी अभवी न नजरे देखे, हिंसक पण उद्धरिये सिद्धाचल-सिद्धक्षेत्र को पापी और अभवी जीव अपनी नजरों से देख भी नहीं पाते हैं । यहाँ दर्शनार्थ आते ही नहीं हैं । इससे यह
४४८
आध्यात्मिक विकास यात्रा