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________________ जईआइ होइ पुच्छा जिणाणमग्गंमि उत्तरं तइआ। . इक्कस्स निगोअस्स अणंतभागोऽवि सिद्धिगओ। जैन सिद्धान्त के मार्ग में आप जब भी कभी यह प्रश्न पूछेगे कि कितने मोक्ष में गए और अभी भी संसार में कितने अवशिष्ट हैं ? यह और ऐसा प्रश्न भले आप अनन्त काल पहले पूछे या आज के वर्तमान काल में पूछिये या फिर भविष्य में भी अनन्तकाल के बाद पूछे... फिर भी आपको उत्तर सदा एक सा ही मिलेगा कि- निगोद का अनन्तवाँ भाग ही मोक्ष में गया है । यद्यपि मोक्ष में अनन्त जीव चले गए हैं और काल भी अनन्त बीत चुका है । महा-विदेह क्षेत्र की तथा सदाकाल चलनेवाले चौथे आरे की अपेक्षा के आधार पर ऐसा निश्चित नियम (The cosmic order) है कि... प्रत्येक ६ महीने के उत्कृष्ट काल में तो जीव निश्चित मोक्ष में जाते ही हैं । यद्यपि प्रतिदिन जा सकते हैं। अरे ! प्रतिदिन तो क्या प्रति क्षण भी जा सकते हैं । भूतकाल में भी गए ही हैं । परन्तु यदि उत्कृष्टतम अन्तर हो भी जाय तो ज्यादा से ज्यादा ६ महीने का ही अन्तर पडता है। इतने अन्तराल के बाद कोई न कोई मोक्ष में अनिवार्य रूप से जाते ही हैं । अतः प्रति६ माह के अन्तराल में उत्कृष्ट, रूप से भी नियमित मोक्ष में भव्य जीव जाते ही रहें तो... सोचिए... बीते हुए अनन्त काल में कितने जीव मोक्ष में गए होंगे? उत्तर- अनन्त जीव । और यह बात तो बीते हुए भूतकाल की हुई, आगे के भविष्यकाल का भी विचार तो करिए...भावि-भविष्यकाल जो अनन्त है और अनन्तकाल तक भी मोक्षमार्ग सदा चौथे आरेवाले शाश्वत क्षेत्र ऐसे महाविदेह क्षेत्र में से चालू ही है । अतः मोक्षगमन निरंतर चालू ही है । तो भावि के अनन्त काल में कितने जीव मोक्ष में जाएंगे? अनन्त । भूतकाल में अनन्त और भावि में भी अनन्त इस तरह अनन्तानन्त जीव मोक्ष में जाने के पश्चात् भी अनन्त भव्यात्माएं संसारचक्र में अवशिष्ट रहेगी। इस हिसाब से-सोचिए कि संसार कितने अनन्तानन्त जीवों की खान है। मोक्ष में सिद्धशिला पर जितने अनन्त जीव हैं उसके सामने संसार में कितने गुने ज्यादा हैं ? इसका ख्याल इन शब्दों से आएगा कि... अनन्त काल के बाद और अनन्त जीवों के मोक्ष में जाने के पश्चात् भी ऐसा उत्तर देना पडे कि...निगोद के अनन्तवें भाग के जीव ही मोक्ष में गए हैं। इससे संसार में जीवों की अनन्तानन्तता स्पष्ट सिद्ध होती है। तीनों काल में मुक्त हुए ऐसे अनन्त सिद्धात्माओं को वंदना करते हुए लिखते हैं कि जे अ अईआ सिद्धा, जे अ भविस्संति णागए काले। संपइअ वट्टमाणा, सव्वे तिविहेण वंदामि ।। सम्यक्त्व गुणस्थान पर आरोहण
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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