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खाली हो जाएगा....सिर्फ अभवी-जातिभव्य ही शेष बचेंगे ऐसी बात भी संभव नहीं है। हम न्याय से तर्कयुक्ती की व्याप्ति के आधार पर विचार करें-जो जो भव्य है वे सभी मोक्ष में जाएंगे ही? या जो जो मोक्ष में गए हैं वे सभी भव्य ही हैं ? जैसे जहाँ जहाँ धुआं है वहाँ वहाँ अग्नि है ? या जहाँ जहाँ अग्नि है वहाँ वहाँ धुंआ है ? यहाँ निश्चयात्मक स्वरूप का निर्णय करना है । अतः जहाँ अग्नि हो वहाँ धुंआ रहे या न भी रहे-जैसे लोहे के गोले को तपाया जाय तो उसमें अग्नि है परन्तु धुंआ नहीं है । परन्तु जहाँ धुंआ रहता है वहाँ अग्नि अनिवार्य रूप से रहेगी ही। ठीक इसी तरह प्रस्तुत अधिकार में सोचिए-जो जो भी मोक्ष में गए हैं वे जरूर भव्य ही थे । परन्तु जितने भव्य हैं वे सभी मोक्ष में जाएंगे ही ऐसी संभावना यहाँ प्रगट नहीं है । अतः सारा संसार खाली होने की संभावना कभी भी खडी नहीं होती है।
- संसार में कितने लकडे हैं.... कितना सोना है । इन लकडों में, सोने में परमेश्वर परमात्मा की प्रतिमा बनने की योग्यता है या नहीं? जी हाँ, पूरी है । कई काष्ठमूर्तियाँ और कई सुवर्णप्रतिमाएं भी हैं । भले ही सेंकडों हों । विशेषावश्यक भाष्यकार कहते हैं कि
भण्णइ भव्वो जोग्गो न य जोगत्तेण सिज्झई सव्वो। जह जोग्गम्मिवि दलिए सव्वत्य न कीरए पडिमा।
तह जो मोक्खो नियमा सो भव्वाणं न इयरेसिं ।। सभी लकडे मूर्ति नहीं बनते हैं । सेंकडों-लाखों मूर्तियाँ बनने के बावजूद भी आज भी लकडा चारों तरफ असंख्य गुना है ही। इसी तरह सोना आज भी चारों तरफ प्रचुर मात्रा में ढेर सारा पडा है । खदानों में भी काफी सोना पडा है । संसार का लाखों-करोडों टन सोना आभूषण-गहने के रूप में परिणमन हो चुका होगा। कई मूर्तियाँ भी बन गई हैं। लेकिन सभी सोना मूर्ति-गहने के रूप में परिणमन अभी भी नहीं हुआ है । इतना काल बीतने के बावजूद भी यही स्थिति है । ठीक इसी तरह संसार में अनन्त भव्यात्माएं हैं। परन्तु सभी मोक्ष में कहाँ चली गई ? यद्यपि भव्य का आधार ही मुक्ति पर है। मोक्ष में जाने की योग्यतावाला होने के कारण ही वह भव्य कहलाता है। बात सही है, परन्तु योग्यता होना एक अलग बात है और उस पद की प्राप्ति होना दूसरी ही बात है । इसलिए अनन्तकाल बीतने के बावजूद भी अनन्त भव्यात्माएं मोक्ष में न गई हुई संसार में आज भी शेष बची हुई हैं। और बीते हुए भूतकाल में अनन्त पुद्गल परावर्तकाल जो बीता है उसमें अनन्त भव्यात्माएं मोक्ष में चली भी गई हैं। अभव्य-जातिभव्य का तो सवाल ही नहीं खडा होता है । अतः शास्त्रकार महर्षि कहते हैं कि
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आध्यात्मिक विकास यात्रा