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________________ देव-गुरु-धर्म का योग प्राप्त हो तो भी अभवी जीव अनन्तकाल में भी...मोक्ष का सुख कदापि प्राप्त कर ही नहीं सकता है। - ३) एक कुमारिका कन्या बचपन की बाल्यावस्था में ही संसार से विरक्त होकर दीक्षा ले लें । प्रव्रजित हो जाय । दीक्षा के बाद आजीवन पर्यन्त शुद्ध नैष्ठिक ब्रह्मचर्य ही पालना है । अतः शादी-पति समागमादि किसी भी सामग्री की कोई संभावना रहती ही नहीं है। परिणामस्वरूप पुत्रप्रसूति-एवं मातृत्व के सौभाग्य का सुख वह जीवनभर कदापि प्राप्त कर ही नहीं सकती है। ठीक ऐसा जातिभव्य या दुर्भव्य जीव होता है, जो संसार के अनन्तकाल के परिभ्रमण में कभी भी देव-गुरु-धर्म का संयोग, मोक्षानुकूल सामग्री की उपलब्धि कदापि प्राप्त कर ही नहीं सकता है । इस प्रकार भवी, अभवी एवं जातिभव्य तीन प्रकार के जीवों का अस्तित्व संसार में है। मुक्ति एवं सम्यक्त्व का अधिकारी भवी जीव उपरोक्त ३ प्रकार के जीवों में अभवी एवं जाति भव्य ये दो प्रकार के जीव तो कदापि सम्यक्त्व प्राप्त कर ही नहीं सकते हैं। क्योंकि उनका मिथ्यात्व अनादि-अनन्तत्रैकालिक है। वे निश्चयमिथ्यात्वी है और मिथ्यात्व के सर्वथा संपूर्ण नाश के बिना सम्यग्दर्शन-सम्यक्त्व की प्राप्ति हो ही नहीं सकती है और सम्यक्त्व के बिना जीव कभी भी मोक्ष प्राप्त कर ही नहीं सकता है। जातिभव्य जीव तो एकेन्द्रिय के साधारण वनस्पतिकाय की पर्याय में से कभी बाहर निकल ही नहीं सकता है। अरे ! प्रत्येक वनस्पतिकाय में भी नहीं आ सकता है। भव्य की कक्षा का होने के बावजूद भी कोई फायदा नहीं । सर्वथा निष्फल गया वह जीव । इसलिए अभव्य और जातिभव्य ये दोनों मोक्ष के अधिकारी कभी भी बन ही नहीं सकते हैं। शास्त्रों में कहते हैं कि- अभवी का जीव आगे बढकर कभी चारित्र भी ले ले, और सब परिषह-उपसर्गादि सहन करता हुआ.... केशलोचादि भी करता हुआ निरतिचार चारित्र का पालन करता हुआ, घोर उग्र तपादि करके इतनी कठिन साधना करता है, कि देखनेवाला यही कह दे कि यह जीव सीधा मोक्ष में जाएगा। लेकिन सम्यक्त्व की प्राप्ति के अभाव में एवं मिथ्यात्व के कारण कभी भी मोक्ष की प्राप्ति अभवी कर ही नहीं सकते हैं। सब में उस प्रकार की योग्यता होती ही नहीं है। भव्यात्माएं मुक्तिगामी आत्माएं कहलाती हैं। भव्य की कक्षा का ही जीव मोक्ष में जाने का अधिकारी है । परन्तु सभी भव्य मोक्ष में चले ही जाएंगे और जिससे सारा संसार सम्यक्त्व गुणस्थान पर आरोहण ४४५
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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