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१२) क्षमा- शान्त स्वभाव . १३) नम्रता - विनय स्वभाव १४) सरलता का आर्जव भाव १५) निर्लोभ का आर्जव भाव
१६) प्रतिक्षण उपशमभाव
१७) प्रत्येक क्षण नम्र, मृदु १८) प्रत्येक क्षण सरल- ऋजु १९) प्रत्येक क्षण अनासक्त भाव २०) पूर्ण गंभीरतामय
२१) पूर्ण आनन्दमय २२) पूर्ण प्रीति - करुणामय
२३) सच्चिदानंद स्वरूप
प्रत्याख्यानीय क्रोध मोहनीय कर्म प्रत्याख्यानीय मान मोहनीय कर्म प्रत्याख्यानीय माया मोहनीय कर्म प्रत्याख्यानीय लोभ मोहनीय कर्म संज्वलन क्रोध मोहनीय कर्म
संज्वलन मान मोहनीय कर्म संज्वलन माया मोहनीय कर्म संज्वलन लोभ मोहनीय कर्म हास्य नोकषाय मोहनीय कर्म
रति नोकषाय मोहनीय कर्म अरति नोकषाय, मोहनीय कर्म शोक नोकषाय मोहनीय कर्म
२४) सदा सर्वथा निर्भय २५) पूर्ण प्रेम
२६) पूर्ण निर्वेद
२७) स्त्री-पुरुष भेदभाव रहित
२८) निर्विकार- वासना रहित
उपरोक्त कोष्ठक में ३ विभाग देखें
I
१) आत्मा अपने आप में मोहनीय कर्म के आवरण से रहित अवस्था में कैसी शुद्ध स्वरूपी है । कैसी शुद्ध गुणवान है इसका स्पष्ट ख्याल आता है । जैसे पानी अपने मूलभूत स्वभाव में कैसा शुद्ध-निर्मल - पवित्र है ? वैसी जीवात्मा क्षमाशील - विनम्र, सरल, संतुष्ट आदि स्वभाववाली है । हास्यादि दोष रहित... गंभीरतादि गुणों से भरपूर है । परन्तु मोहनीय कर्म की प्रवृत्ति करने से जीव कैसी कैसी कर्म प्रकृतियाँ बांधता है ? एक एक प्रकृति का नाम देखने से आपको स्पष्ट ख्याल आ जाएगा कि... आत्मगुणों से कैसी विपरीत भाववाली प्रकृति है । आत्मा की शत्रु जैसी ये कर्म प्रकृतियाँ हैं । आत्मा के जिन गुणों को, जिस स्वभाव को ये रोकती है, आच्छादित करती है उस हिसाब से उस उस कर्म प्रकृति का नामकरण हुआ है ।
I
भय नोकषाय मोहनीय कर्म
जुगुप्सा नोकषाय मोहनीय कर्म
स्त्री वेद मोहनीय
पुरुष वेद मोहनीय नपुंसक वेद मोहनीय
परिमित क्रोधी
परिमित मानी - अभिमानी परिमित मायावी, वक्र
परिमित लोभी, आसक्त
स्वल्प क्रोधी
स्वल्प मानी
स्वल्प मायावी
स्वल्प लोभी हँसी-मजाक करनेवाला पसंद में राजी होनेवाला अप्रियं में नाराजी
शोक- विशाद- खेद करनेवाला
आत्मशक्ति का प्रगटीकरण
डरपोक, भयभीत
अप्रति
पुरुष कामी- भोगी
स्त्री कामी - भोगी उभयलिंग भोगी ।
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