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पदार्थों का यथार्थ सत्य बोध
आत्मा- मन- बुद्धि आदि पदार्थ अपने शुद्ध सत्य स्वरूप में जैसे हैं ठीक उन्हें वैसे ही मानना यह सम्यग्दर्शन है। और उन्हें सत्य स्वरूप में जानना - समजना सम्यग्ज्ञान है । सच्चा ज्ञान है। और जैसा स्वरूप जाना है, माना है, उसीके अनुरूप आचरण करना सम्यग्चारित्र है । ये तीनों मिलकर ही मोक्ष का मार्ग बनता है। इनमें से एक भी कम हो
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तो मोक्ष का मार्ग नहीं बन सकता। फिर संसार का ही मार्ग बनेगा । इसलिये आवश्यकता है तत्त्वों के, पदार्थों के यथार्थ - वास्तविक स्वरूप को जानने-मानने और आचरण करने की । जैसा सर्वज्ञ वीतरागी ने कहा है ठीक शतप्रतिशत वैसा ही और वही स्वरूप हमें
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सबको जानना, मानना, स्वीकारना, और आचरना चाहिए। पदार्थों-तत्त्वों का यथार्थ- सत्य जैसा है ठीक वैसा वास्तविक बोध न हो तो मिथ्यात्व टलना-मिटना संभव ही नहीं है । फिर संसार में भटकना पडेगा । जिस संसार में अनादि-अनन्त काल से जीव भटकता ही आ रहा है, और भविष्य में अनन्तकाल तक भटकता ही रहेगा, जाएगा तो अन्त कब आएगा ?
सत्य बोध को कौन रोकता है ?
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प्रायः सत्य स्वरूप जानने की तरफ जीवों की रुचि होती है । सत्य सूर्य की तरह स्पष्ट - प्रत्यक्ष है । इसलिए प्रायः सत्य अनेकों को पसंद होता है । प्रिय भी होता है । लेकिन जैसे सूअर को गधे को मिठाई पसन्द ही नहीं है वैसे ही अनेक जीव संसार में ऐसे ही होते हैं जिन्हें सत्य पसन्द ही नहीं है । असत्यप्रिय ही है वे जीव । अतः गाढ मिथ्यात्व से ग्रस्त रहते हैं । ऐसे मिथ्यात्वी जीव जिनकी मति - दृष्टि ... सर्वथा मोहनीय कर्म से ग्रस्त रहती है। याद रखिए, ज्ञान को विकृत करनेवाला, विपरीत करनेवाला मोहनीय कर्म है 1 ज्ञानावरणीय कर्म ज्ञान गुण पर आवरण लाता है। परिणाम स्वरूप अज्ञान बढाता है । ज्ञान की न्यूनता को भी अज्ञान कहते हैं और स्वरूप अज्ञान में प्रयुक्तं "अ" अक्षर अल्प एवं अभाव दोनों अर्थों में प्रयुक्त है । यह ज्ञानावरणीय कर्म के कारण स्थिति है । परन्तु विकृत या विपरीत ज्ञान की स्थिति सर्वथा भिन्न ही है ।
विकृत - या विपरीत ज्ञान में ज्ञान तो है । भले ही वह अपूर्ण - अधूरा हो लेकिन जितना है उतना भी मोहनीय कर्म से आवृत्त है । आच्छादित है । जितना कपडा है वह भी लाल-पीले-काले रंग से रंगा हुआ है । अतः वास्तविक शुद्ध सफेद स्वरूप कपडे का होते हुए भी दृष्टिगोचर ही नहीं होता है । सत्य तो यह है कि कपडा मूल में तो सफेद ही
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आत्मशक्ति का प्रगटीकरण
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