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सभी पदार्थ ज्ञान-दर्शनात्मक बन जाते। कोई भी जड रहता ही नहीं। फिर तो ईंट-चूना-पत्थर-मकान-लकडा इत्यादि सभी पदार्थ बोलते-चलते-हँसते-रोते आदि सब कुछ मनुष्य की तरह करते । फिर तो कहीं कोई प्रश्न ही नहीं उठता। फिर तो संसार में सभी सचेतन-सजीव पदार्थ ही रहते । जड पुद्गल पदार्थ कोई नाम के लिए भी नहीं रहते । बस, तो फिर सब जीव सृष्टि ही रहती, जड सृष्टि का नाम निशान भी नहीं रहता।
क्या यह संभव है ? न भूतो न भविष्यति । अनन्त भूतकाल में कभी ऐसा नहीं हुआ है, और भविष्य में कभी ऐसा होगा नहीं। अतः संसार में जीव सृष्टि भी है और अजीव सृष्टि भी है । जीव भी अनन्त है । और अजीव पुद्गल द्रव्य के अनन्तानन्त परमाणु है। अजीव पुद्गल स्कंध परमाणुओं के संचय से संघात से बनते हैं। इसीलिए उनमें ज्ञान दर्शनात्मक चेतना-संवेदना कुछ भी नहीं है। ज्ञान-दर्शन-संवेदना रहित जड, पुद्गल द्रव्य है। . चेतन द्रव्य ज्ञान-दर्शनात्मक है । ऐसी ज्ञान-दर्शनात्मक चेतना शक्ति युक्त चेतन द्रव्य अनादि-अनन्त अस्तित्ववाला है। अनुत्पन्न- अविनाशी-शाश्वत-नित्यअजर-अमर द्रव्य है । न तो कभी उत्पन्न होता है और न कभी नष्ट होता है । उत्पन्न ही नहीं होता है इसीलिए आदि(शुरुआत) नहीं है अतः अनादि है । और नाश-विनाश कभी होता ही नहीं है, अतः अविनाशी शाश्वत द्रव्य है। अविनाशिता के कारण ही अनन्तता आती है । अतः अनादि-अनन्त ऐसा शाश्वत नित्य द्रव्य स्वरूप चेतनात्मा का है। यही कर्ता-कारक सक्रिय द्रव्य है। चेतनात्मा ही मनोवर्गणा के पुद्गल परमाणुओं को ग्रहण करके मन बनाती है। अपने ही ज्ञान को प्रगट करने के लिए मनं द्रव्य को बनाया जिसकी सहायता से विचार प्रगट किये जा सकते हैं । विचारों में ज्ञान ही प्रगट होता है । ज्ञानात्मक विचारों के साथ-साथ मोहनीय कर्म के राग-द्वेष के उदय के कारण राग-भाव तथा द्वेष भाव प्रगट होता है । अतः मोहनीय कर्म के कारण रागात्मक संवेदनाएँ, तथा द्वेष के कारण द्वेषात्मक संवेदनाएँ उत्पन्न होती है। रागात्मक संवेदनाओं को जीव ने सुखद माना है, और द्वेषात्मक संवेदनाओं को जीव ने दुःखद माना है।
अनुकूल संवेदनाएँ सुखद और प्रतिकूल संवेदनाएँ दुःखद । इस तरह दोनों में सुख-दुःख की बुद्धि बना ली है। राग को अनुकूल मान लिया है और द्वेष को जीव ने प्रतिकूल मान लिया है । अतः दोनों प्रकार की संवेदनाएँ निरंतर उद्भवती रहती है । इसी कारण प्रतिक्षण जीव सुख-दुःख का अनुभव वेदन-संवेदन करता ही रहता है। ..
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आध्यात्मिक विकास यात्रा