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________________ अन्य दूसरा कौन है ? चेतनात्मा के सिवाय सभी अजीव द्रव्य सर्वथा जड ही है । अतः आकाश-पुद्गलादि किसी भी जड द्रव्य में आत्मा को बनाने की कर्तृत्व कारक शक्ति है ही नहीं। जड स्वयं निष्क्रिय है। दूसरे पक्ष में आप यदि ऐसा मानें कि...आत्मा स्वयं ही बनती होगी, तो यह पक्ष भी कैसे सत्य सिद्ध हो सकता है? तथाप्रकार के पुद्गल परमाणुओं के पिण्ड को ग्रहण करनेवाला कौन? क्या ग्रहण करनेवाला पहले से ही था तब उसने तथाप्रकार के परमाणुओं को ग्रहण किया? अरे ! जब ग्रहण करनेवाला कर्ता था तो फिर परमाणुओं को ग्रहण करने की आवश्यकता ही कहाँ रही? कर्ता का अस्तित्व जब पहले है ऐसा स्वीकार लिया जाय तो फिर बनाने की आवश्यकता ही कहाँ रही? तीसरे पक्ष में यह भी विचार कर लें कि यदि बनाएँ तो भी आत्मा को बनाने योग्य वैसे चेतन परमाणुओं का अस्तित्व ही कहाँ हैं ? परमाणु हो और वे चेतन हो यह कैसे संभव हो सकता है? आकाश हो और वह प्रवाही स्वरूप हो यह कैसे संभव हो सकता है? अतः संसार में जड-पुद्गल पदार्थ के ही परमाणु होते हैं । तदतिरिक्त संसार में ऐसा एक भी द्रव्य नहीं है जिसके परमाणु हो । नहीं, ऐसा एक भी द्रव्य नहीं है । षड् द्रव्यों में अन्य कोई द्रव्य नहीं है । अतःचेतन परमाणु का अस्तित्व ही नहीं है । तो फिर वैसे परमाणु ग्रहण कौन करे? और दूसरी तरफ परमाणुओं को ग्रहण करनेवाला कोई द्रव्य विशेष भी तो नहीं है ? अतः दोनों तरफ से संभावना ही नहीं है। ... एक और चौथी बात यह है कि... यदि जड पुद्गल के परमाणुओं को ग्रहण करके उनके पिण्ड में से चेतना शक्ति उद्भवति है ऐसा मानें... तो जैसे चार्वाकमत में मदशक्ति की तरह चेतना की उत्पत्ति मानी है वैसे माने क्या? अच्छा जिन परमाणुओं में ज्ञान-दर्शन-चारित्रादि का सर्वथा अस्तित्व ही नहीं है क्या उन और वैसे परमाणुओं के इकट्ठे होने पर ज्ञान शक्ति दर्शन शक्ति आदि आ जाएगी? जी नहीं। यह तो रेती (वाल) को पीलकर तेल निकालने जैसी पागलपन की बात लगती है । आपरेती के सेंकडों कण इकट्ठे कर लीजिए और .. महीनों तक उन्हें घाणी में पीलते रहिए, क्या उनमें से तेल निकलेगा? कभी संभव भी है? जी नहीं। एक चौक बनता है, काष्ट-लकडा है उसमें कितने असंख्य परमाणुओं का जत्था है? उन असंख्य, अनन्त परमाणुओं से वह जब बना है तो फिर क्यों नहीं उनमें ज्ञान शक्ति आई? यदि ऐसे परमाणुओं के संचय में ज्ञान शक्ति आती होती तो...आज दिन तक संसार में अनन्त परमाणुओं से अनन्त पुद्गल पदार्थ बने ही है । क्यों नहीं किसी में ज्ञान शक्ति आई? यदि ऐसे आती होती तो संसार के अनन्तानन्त आत्मशक्ति का प्रगटीकरण . '७९१
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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