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लेकिन ज्ञानात्मक वेदना-संवेदनाएँ जड से कभी भी नहीं उद्भवति । उसके उद्गम का एक मात्र आधार स्रोत-आत्मा ही है। जिन दर्शनों में आत्मा को माना ही नहीं है वे दर्शन संवेदना का उद्भव कहाँ से मानेंगे? या तो मन को ही आत्मा मानकर संवेदनाओं का उद्गम माने, या फिर शरीर को आधारभूत मानकर चलें । परन्तु बिना ज्ञानात्मक चेतनावाले द्रव्य आधारभूत माने संवेदनाओं का उद्भव अन्य किसी भी द्रव्य से नहीं मान सकते । शरीर भी जड है। शरीर से संवेदनाएँ उत्पन्न नहीं होती है परन्तु सूर्य से उत्पन्न प्रकाश की किरणें जिस तरह धरती के धरातल पर आकर व्यक्त होती है । ठीक उसी तरह आत्मा के खजाने से उत्पन्न संवेदनाओं का स्रोत... देह के धरातल पर आकर व्यक्त होता है । उसका अनुभव भी करनेवाली चेतना ही है । मन तो मात्र बीच का माध्यम है।
चेतन आत्मा ने विचार करने के लिए मनोवर्गणा के पुद्गल परमाणुओं को. ग्रहण करके पिण्डरूप मन बनाया है। यह है सर्वज्ञ प्रणीत प्रक्रिया। जैसे अनेक जड पदार्थ के परमाणु होते हैं वैसे ही अनन्त ब्रह्माण्ड में आठ प्रकार की मुख्य वर्गणाओं में मनोवर्गणा भी एक वर्गणा ही है । याद रखिए सभी वर्गणाएँ अर्थात् पुद्गल परमाणुओं का जत्था सब जड है । इनमें चेतम या चेतना का नाम निशान भी नहीं है । जिनका वर्णन पहले किया जा चुका है इन विविध प्रकार की वर्गणाओं में से कुछ वर्गणाएं ग्रहण कर जीव अपना शरीर बनाता है, कार्मण वर्गणा से कर्म बनाता है, भाषा वर्गणा के परमाणु ग्रहण कर जीव भाषा बोलता है । इसी तरह मनोवर्गणा के पुद्गल परमाणुओं का पिण्ड ग्रहण कर जीव मन बनाता
जैसे गेहुँ का आटा लेकर उसमें पानी आदि मिलाकर रोटी बनाई जाती है ठीक उसी तरह जीव मनोवर्गणा के पुद्गल जड परमाणुओं के पिण्ड को ग्रहण करके उससे मन बनाता है। अतः जड का बना हुआ होने के कारण मन जड है । और बनानेवाला चेतन द्रव्य है। यदि बनानेवाला ही नहीं होता तो किसी भी स्थिति में मन बनता ही नहीं । बनानेवाले चेतनात्मा ने कर्मवश यह प्रवृत्ति की है तभी मन बना है। परन्तु एक सिद्धान्त अच्छी तरह याद रखिए कि चेतन-आत्मा इस तरह बनाई नहीं जा सकती। किसी भी परमाणुओं की वर्गणाओं को ग्रहणकर आत्म द्रव्य बनाया नहीं जा सकता। यदि बनाया जाय तो कौन बनाए? बनानेवाला कर्ता-कारक द्रव्य किसे माने? जैसे मन को बनाने के लिए चेतन आत्मा कर्तारूप में कारक द्रव्य है । वैसे ही चेतनात्मा को बनाने के लिए कर्तारूप कारक द्रव्य किसको माने? मन या शरीर को मानेंगे? याद रखिए वे स्वयं ही जड है । जड में कर्तृत्व शक्ति न होने के कारण वह कर्ता या कारक नहीं बन सकता । अतः जड को छोडकर
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आध्यात्मिक विकास यात्रा