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के प्रतिपादक है । हम उनके आदर्श पर चलनेवाले, अनुसरण करनेवाले हैं। यही हमारा कर्तव्य है । इसी में हमारी धर्मानुयायिता चरितार्थ सिद्ध होती है ।
मन और आत्मा में भेद
मन और आत्मा के विषय में भी यही सिद्धान्त स्वीकार कर चलने पर चरम सत्य की कक्षा प्राप्त होगी । अन्यथा नहीं । आत्मा के सिवाय कोई अन्य चेतन द्रव्य है ही नहीं । आत्मेतर सभी पदार्थ जड ही हैं। निर्जीव ही हैं। आत्मा ही कर्ता सक्रिय चेतन द्रव्य है । उसके अभाव में जड निर्जीव द्रव्य में सक्रियता कौन लाएगा ? विपश्यना की प्रक्रिया में अफसोस तो इस बात का है कि... जिसे देखना है, संवेदना का आधार जो है उस शरीर द्रव्य को तो मानना है परन्तु देखनेवाला स्वयं जो देखता है उसे ही नहीं मानना ? और . फिर विशेष पश्यना - देखना ऐसी प्रक्रिया का ध्यानरूप में अर्थ करना कहाँ तक उचित है ? बिना दृष्टि के विशेषार्थ में देखेगा कौन ?
क्या वेदना - संवेदना देह जन्य ही है ? यदि हाँ, तो फिर मृत शरीर भी देह रूप ही है उसमें क्यों नहीं उठती ? समुद्र की लहरों की तरह निरन्तर उठती - चढती ही है। क्या वेदना - संवेदना ज्ञानात्मक नहीं है ? वेदना-संवेदना का उद्गम स्रोत शरीर है या चेतना ? बिजली तांबे के तार को आधार बनाकर चलती जरूर है । परन्तु उद्गम स्रोत कोई अलग ही है । वहाँ से उत्पन्न होकर जब आती है, चलती है तो ही तार में बह सकती है। सूर्य की किरणें सूर्य से ही निकलती है, उत्पन्न होती है । वहाँ से निकलकर धरती पर आती है, गिरती है, किसी आधार पर ठहरती है, तभी दृष्टिगोचर होती है। धरती पर न आए तो क्या बीच आकाश में सूर्य रश्मियों के प्रकाश का अस्तित्व मानना ही नहीं चाहिए? यदि न माने तो धरती के आधारभूत धरातल पर कैसे आई ? कहाँ से आई? इसी तरह संवेदनाओं-वेदनाओं का आधारभूत स्रोत चेतना को न मानकर मात्र देह को ही मानना सबसे बडी भ्रान्ति-भ्रमणा होगी । देह सर्वथा जड है, चेतन नहीं है। चेतना शक्ति आत्मा
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में रहती है । आत्मा इस देह में रहती है । देह में आकर जन्म धारण करती है । मृत्यु के समय देह का वियोग करके देह को छोड़कर चली जाती है। जब तक आत्मा देह में रहती है तब तक ... ही देह में सजीवनता - सक्रियता आती है, रहती है, देह छोडकर चली जाने पश्चात् पुनः जडता ।
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ठीक इसी तरह मन भी संवेदना-वेदनाओं का उद्गम स्रोत नहीं है । आखिर मन भी जड़ है । यदि संवेदनाएँ जड में से उद्भवति होती तो जरूर मन में से भी उत्पन्न होती ।
आत्मशक्ति का प्रगटीकरण
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