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आधारभूत द्रव्य मानना ही पडेगा। जल के लिए कटोरी-ग्लासादि आधारभूत पदार्थ है। जल रहित-आधारभूत कटोरी-ग्लासादि का स्वतन्त्र अस्तित्व स्पष्ट है । तो क्या इसी तरह संस्कार-वासनादि पाँचो रहित स्वतन्त्र किसी अन्य द्रव्य का अस्तित्व बौद्धों में है ? नहीं? यदि नहीं है तो फिर किसके आधार पर संस्कार-वासनादि को मानना? आधार रहित अवस्था में संस्कारादि का अस्तित्व कैसा रहेगा? क्या रहेगा? . - कर्म का आधार निश्चित रूप से आत्मा ही है । आत्मा न हो तो कर्म का कोई अस्तित्व ही नहीं है। यदि आत्मा है तो ही कर्म का अस्तित्व है। परन्तु आत्मा के अस्तित्व होने मात्र से ही कर्म लग नहीं जाते हैं। यदि आत्मा ग्रहण करे तो लगते हैं। अन्यथा नहीं। सिद्धात्मा जो सर्वथा कर्मरहित मनादि रहित ही है । उसको कर्म लगने का प्रश्न खडा ही नहीं होता है । मन-देहादि है ही नहीं । अतः सिद्धात्मा सर्वथा निष्क्रिय ही है । अतः कार्मण वर्गणा के पुद्गल परमाणुओं का ग्रहण ही नहीं होता है । उसी सिद्धशिला पर एकेन्द्रियजीव जो है वे कार्मण वर्गणा को ग्रहण करते हैं और प्रतिक्षण कर्म बांध रहे हैं । अतः कर्म रहित भी आत्मा का शुद्ध स्वतंत्र आत्म द्रव्य का अस्तित्व बौद्ध दर्शन ने माना है.? जी नहीं। सर्वथा नहीं। अतः सादृश्यता किस दृष्टि से की जाय । सैद्धान्तिक दृष्टि से तथा तात्त्विक दृष्टि से बौद्ध और जैन दर्शन में आसमान जमीन का अन्तर है।
.. सर्वज्ञ भगवान महावीरस्वामी ने उत्पाद-व्यय-धौव्ययुक्त पदार्थ का अस्तित्व बताया है। अतः धौव्य इन तीनों अवस्था युक्त है । बौद्ध दर्शन में सिर्फ उत्पाद व्यय युक्त दो ही अवस्था मानी है । धौव्यस्वरूप उन्होंने माना ही नहीं है। क्योंकि पदार्थ को क्षणिक ही माना है । अतः क्षणिक मानने के कारण किसी को भी ध्रुव नित्य नहीं कह सकते हैं। परन्तु द्रव्य अपने मूलभूत स्वरूप में तो सदा नित्य-ध्रुव ही है । परमाणु स्वरूप में नित्य ध्रुव है । जबकि पर्याय स्वरूप में उत्पाद-व्ययात्मक जरूर है । इसीलिए“गुण–पर्यायवद् द्रव्यम् यह द्रव्य का लक्षण दिया है । गुण और पर्याय युक्त ही द्रव्य होता है, रहित नहीं। अतः द्रव्य की अवस्था है गुण-पर्याय । परन्तु एक बात स्पष्ट रूप से ध्यान में रखिए... यदि द्रव्य ही न रहे तो गुण पर्याय का अस्तित्व फिर कैसे रहेगा? प्राणशक्ति ही न रहे तो फिर...शरीर क्या रहेगा? मृत शरीर को कोई नहीं रखता। क्या हमें सिर्फ प्रकाश ही मानना चाहिए और सूर्य को नहीं मानना? प्रकाश गुणस्वरूप है। सूर्य द्रव्य स्वरूप है। सूर्य का आधार ही न हो तो फिर...प्रकाश का अस्तित्व कैसे मानेंगे? क्या सफेदी ही माननी और उसके आधारभूत कपडे को मानना ही नहीं? लेकिन यह भी सोच लीजिए
आत्मशक्ति का प्रगटीकरण
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