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________________ क्षणिक और नाशवंत भी किसको कहना? जब पानी ही नहीं है तो फिर नौका कहाँ तैरेगी? इसी तरह जो पदार्थ शून्यरूप है उसे क्षणिक या नाशवंत कहना यह आकाश के कुसुम और वन्ध्या के भी पुत्र कहने जैसा वदतो व्याघात जैसी बात होगी। परस्पर विरोधाभासी विचारधारा रहेगी। दूसरी तरफ ‘सर्वं ' शब्द का प्रयोग कर दिया है अतः जड हो या चेतन सबको क्षणिक शुन्यादि विशेषण लाग हो गएं । आश्चर्य तो यह है कि बौद्धों के मत में आकाशादि पदार्थों का अस्तित्व कैसे रहता है ? प्रत्येक क्षण नष्ट करती ही जाती है । और क्षणसन्तति की धारा रह जाती है । अनन्त काल बीतने के बावजूद भी आकाश आज भी जैसा था वैसे ही स्वरूप में है तो सही। कोई हरकत नहीं... पदार्थों को क्षणिक कहकर प्रतिक्षण नष्ट होता है ऐसा कहकर भी क्षणसन्तति के माध्यम से उसके अस्तित्व को पुनः नित्य माना तो है । चलो सीधे कान नहीं पकडा तो घुमा फिरा कर ही सही, कान पकडा तो है । पदार्थों को क्षणिक कहकर भी अनादि अनन्तकालीन अस्तित्व स्वीकारने में शाश्वतता आती है कि नहीं? अफसोस कि पदार्थ को शून्य कहकर भी क्षणिक कहना और क्षणिक कहकर भी क्षणसन्तति की धारा से नित्य अर्थ में मानना यह तत्त्वों की कैसी व्यवस्था? सत्यता का अंश भी नहीं लगता है। ... पदार्थ जो क्षणिक नाशवंत है... उन्हें देखनेवाला उस स्वरूप में जाननेवाला कौन ? विपश्यना विशेष अर्थ में पश्यना-देखना होना चाहिए। जिसने पदार्थ का ऐसा स्वरूप प्रतिपादित किया है जिसने पदार्थ की ऐसी अवस्था देखी है वह देखनेवाला दृष्टा देखने के लिए मौजूद था कि नहीं? जिसे देख रहा है वह और जो देख रहा है वह दृष्टा दोनों ही यदि क्षणिक हो तो शून्यरूप हो तो जगत् के पदार्थ क्षणिक हैं शून्य हैं यह कौन दिखाता? समझाता? क्षणिकवाद के सिद्धान्त के आधार “सर्वं क्षणिकं” के नियमानुसार जगत् के सभी पदार्थ जब क्षणिक है.. तब जिस क्षणिक पदार्थको दृष्टा देख रहा था तब वह क्षणिक था कि नहीं? पदार्थ क्षणिक था...जो पदार्थ क्षण.. क्षण... प्रति क्षण नष्ट हो रहा तब .. दृष्टा देखनेवाला भी क्षणिक था या नित्य था? बौद्ध दर्शन में नित्य-शाश्वत तो किसीको भी नहीं कहा है। इन शब्दों का प्रयोग वे कतई करते ही नहीं है। यदि करें तो क्षणवाद-शून्यवाद का सिद्धान्त चला जाता है । अतः निश्चित हुआ कि देखनेवाला दृष्टा भी क्षणवाद के सिद्धान्त से बचा नहीं था। वह भी उसी क्षणवाद की चपेट में आ गया। अब जब दृष्टा देखनेवाला भी क्षणवाद ग्रस्त क्षणिक था तो उस क्षण को देखा किसने? प्रतिक्षण नष्ट होनेवाले स्वरूप को देखनेवाला कौन था? देखने जाय इतनी देर आत्मशक्ति का प्रगटीकरण ७८५
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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