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अध्याय १२ आत्मनि
शात कापगटाकरण
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दुर्जेय मोह कर्म..........
..७७५ वमन को चाटना............
........७७७ मोहवश ज्ञानदृष्टि के बंध द्वार...
... ७७९ संसार एक मोह का मदिरालय...........
........७८१ चेतन को हितशिक्षा.............
.........७८२ आखिर मन क्या है ?................
........७८३ तत्त्वज्ञानाधारित आचार-व्यवहार..............
.......७८८ मन और आत्मा में भेद................................ .....७८९ भ्रान्तिवश अज्ञान..............
..७९५ पदार्थों का यथार्थ सत्य बोध, उसे कौन रोकता है ?............
.....७९७ आध्यात्मिक विकास में बाधक मोहनीय कर्म ......... .......८०० क्या आत्मा का घात संभव है ?....
......८०२ गुणघातक मोहनीय कर्म..............
........८०३ स्वभावघातक मोहनीय कर्म...................
............८०५ स्वभाव रमणता और विभाव भ्रमणता.................. .........८०६ संसार बढानेवाले कषाय...
........८०८ सभी कर्मों का कारणभूत कर्म..................... आश्रव और बंध के बीच समानता....... आश्रव और बंध हेतुओं में मोहनीय कर्म....
..........८१६ १८ पापों से ८ कर्म का बंध....
.........८२० मोहनीय कर्म की प्रकृत्तियां..................... .........८२२ संसार की समस्त प्रवृत्तियां मोहमूलक है...........................८२३ ज्ञान प्राप्ति की प्रक्रिया..
........८२६ भावपाप ही.कर्मरुप है.....
.......८३१ वृत्ति - प्रवृत्ति - प्रकृत्ति................................. ......८३२ कर्म जाल से मुक्ति............
.........८३४ मो = मोह, क्ष = क्षय, मो + क्ष = मो + क्ष...
.....८३६ १८ पापस्थानकों में विभाजन........... माहनीय कर्म के क्षय का लक्ष्य और साधना.............. ........८४४ पार मोहनीय कर्म कथा की साधना - किसका क्षय पहल कर?................... ...... ...........८४६
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