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दुमपत्तए पंडुरए जहा, निवडइ राइगणाणं अच्चए। .
एवं मणुआण जीविअं, समयं गोयम! मा पमायए ॥ १० ॥ - जिस तरह वृक्ष पर का पत्ता जीर्ण-शीर्ण बनकर गिर पडता है। उसी तरह रात्रि-दिन के समूहात्मक वर्षों का काल व्यतीत होने पर स्थिति समाप्त होनेसे चेतनात्मा भी देह छोडकर चली जाती है ऐसा मनुष्यों का जीवन क्षणभंगुर है अतः हे गौतम, एक समय मात्र का भी प्रमाद मत करना।
दुल्लहे खलु माणुसे भवे, चिरकालेण वि सव्वपाणिणं। . गाढा य विवाग कम्मुणो, समयं गोयम! मा पमायए ।। १०/४।।
पुण्यशून्य सभी जीवों के लिए असंख्य जन्मों के बाद भी मनुष्य जन्म प्राप्त करना महादुर्लभ है । और दूसरी तरफ मनुष्य गति विघातक प्रकृतिरूप कर्मों के उदय का विनाश = क्षय करना बहुत कठिन है । इतने भारी कर्म बहुत जल्दी खपाने अशक्य है । अतः हे गौतम, एक समय मात्र भी प्रमाद मत करना।
इस तरह चरमतीर्थपति श्री महावीर प्रभु अपनी अन्तिम देशना स्वरूप उत्तराध्ययन सूत्र के १० वें अध्ययन के ३७ श्लोकों में गौतम गणधर को संबोधित करते हुए प्रमाद न करने और अप्रमत्त बनने के लिए उपदेश देते हैं। भगवान के इस संबोधन से गौतम को बिल्कुल बुरा नहीं लगा। सोचिए, जो गौतम ५० हजार शिष्यों के गुरु हैं, जो स्वयं गणधर हैं, द्वादशांगी के रचयिता हैं वे क्या प्रमाद करेंगे? प्रमादग्रस्त रहेंगे? कितने ज्यादा अप्रमत्त होंगे? फिर भी भ. महावीर ने गौतम को प्रमाद न करने के लिए... कहा... बार बार कहा।
भगवान के संबोधन के जो शब्द हैं उन शब्दों में देखिए... समयं गोयम !मा पमायए" "हे गोयमा समयं मापमायए।"हे गौतम ! एक समय मात्र का भी प्रमाद मत करिए। संबोधन के इन शब्दों में 'समय' शब्द बडा ही महत्व का है। इसका रहस्य ऐसा है कि ... 'समय' कालवाची शब्द है। यह कालवाची सूक्ष्मतम इकाई का सूचक है । एक बार आँखों की पलकें द्रुतगति से बन्द कर खोलने जितने काल में
असंख्य समय
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आध्यात्मिक विकास यात्रा