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________________ उदय की तीव्रतादि के कारण... साधक कषायादि की प्रवृत्ति में मूढ हो जाता है । परिणाम स्वरूप प्रमादि बन जाता है । और सातवें गुणस्थान पर आत्मज्ञान का उपयोग बढाकर मोहनीय कर्म के सामने लड़ने का प्रबल पुरुषार्थ करे वह अवस्था सातवें अप्रमत्त गुणस्थान की है। महामहोपाध्यायजी “अमृतवेल की सज्झाय” में फरमाते हैं कि चेतन ! ज्ञान अजुवालीए, टालीए मोह संताप रे। . . चित्त डम डोलतु वालीए, पालीए सहज गुण आप रे॥ - चेतन जीव को संबोधित करते हुए कह रहे हैं कि- हे चेतन ! तू अपने आत्मज्ञान का उजाला कर... उसे बढा.. बस इसीसे तू अपने मोहनीय कर्म का संताप. टाल सकता है । दूर कर सकता है । मोहनीय कर्म के उदय के कारण जो तेरा चित्त-मन डोलता है, चंचल-चपल बनकर भटक रहा है उसे तू तेरे आत्मिक ज्ञान से मोड सकता है । बदल सकता है । अपने सहज गुणों का पालन भी अच्छी तरह कर सकता है । मोहनीय कर्म के उदय की तीव्रता के कारण चित्त डगमगा जाता है । और मोह का संताप बढ जाता है यही तो प्रमाद की स्थिति है । इसके उपाय के रूप में अपनी आत्मा के सहज गुणों का पालन करने के लिए महापुरुष यहाँ पर उपदेश दे रहे हैं । छठे गुणस्थानवर्ती प्रमादरूपी बीमारी को दूर करने की दवाई सातवें गुणस्थान के अप्रमत्तभाव की ही है। यही प्रक्रिया उपरोक्त सज्झाय की गाथा में दर्शायी है । साधक इसका खूब मन्थन–चिन्तन करके इसमें से मक्खन निकाल सकता है। अप्रमत्तभाव के लिए गौतम को संबोधन जैन संघ के आद्यगुरु, परमगुरु जो गौतमस्वामी हैं वे परमात्मा महावीर प्रभु के प्रथम गणधर शिष्य थे। गणधर बनना कोई सामान्य कक्षा की बात नहीं है । यह बहुत बडी ऊँचाई प्राप्त करने की बात है । ऐसे गौतम जो ३० वर्ष तक प्रभु महावीर के साथ रहे। भगवान का साथ तक नहीं छोडा, छाया तक नहीं छोडी। ऐसे गौतम जो द्वादशांगी के रचयिता श्रुत-शास्त्रों के सागर थे । सर्वथा संपूर्ण रूप से श्री वीर प्रभु को समर्पित थे। प्रभु के चरणों की शरण स्वीकार करके आजीवन पर्यन्त संजग-जागृत आत्मा के प्रहरी थे। ऐसे गौतम को भी प्रमाद छोड़ने के लिए, प्रमाद न करने के लिए, और अप्रमत्त बनने के लिए भगवान ने उपदेश देते हुए कहा है साधना का साधक - आदर्श साधुजीवन ७६९
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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