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अपना ज्ञानबल, तपोबल, क्रियाबल बढाकर ही पूर्व कर्मों के उदय के साथ लड रहा है । उससे मुकाबला करता हुआ जी रहा है। हाँ,... हो सकता है कि वर्तमान का पुरुषार्थ कमजोर पडे और उसके सामने पूर्व कर्म का उदय ज्यादा तीव्र हो जाय ऐसी स्थिति में साधक ज्यादा प्रमादग्रस्त बन जाता है। दूसरे भंग में वर्तमान पुरुषार्थ ज्यादा तीव्र हो जाय और पूर्व कर्म का उदय कमजोर हो जाय ऐसी स्थिति में साधक बाजी जीत जाता है। तीसरे भंग में वर्तमान का पुरुषार्थ और पूर्वकर्म का जोर दोनों ही कमजोर हो जाते हैं । ऐसे कई जीव हैं जिनके जीवन में यह स्थिति है । और चौथे भंग में दोनों ही सबल - सशक्त ते हैं । आपने कई जीवों की ऐसी स्थिति भी देखी होगी कि जो द्विधा में पड जाते हैं, क्या करूँ ? यह करूँ कि यह ? इस द्विधा में किसको प्राधान्यता दूँ ? यह स्थिति दोनों की समान्तर स्थिति में बनती है ।
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इस तरह चार भंग बनते हैं । इन चार भंगों में सर्वश्रेष्ठ भंग एकमात्र दूसरा भंग है जिसमें पूर्वकृतकर्म का उदय कमजोर हो जाय और वर्तमान पुरुषार्थ उससे हजारों गुना ज्यादा हो जाय । तभी साधक बाजी जीत सकता है। अब यह भी सोचिए कि ... क्या यह अवस्था अपने आप जाएगी ? या आप स्वयं बनाओगे ? अपने आप आने का इंतजार करने की अपेक्षा साधक को चाहिए कि ... वह स्वयं ऐसी अवस्था निर्माण करें । इन्तजार कम करी कि पूर्व कर्म का उदय कमजोर होगा तभी मैं पुरुषार्थ करूँगा ? नहीं । साधक का मार्ग तो यह है कि वह पूर्वकृत कर्म के उदय की चिन्ता न करे । वर्तमान में अपने हाथ में बाजी जीतने के लिए प्रबल पुरुषार्थ ही एक मात्र उपाय है। अतः इसको ही ज्यादा तीव्र करूं, बस फिर तो सब जीत साधक की ही है ।
मोहनीय कर्म और आत्मज्ञान
आत्मा के ८ कर्मों में मोहनीय कर्म बडा भारी कर्म है। इसकी २८ प्रकृतियाँ हैं । यह सतत उदय में रहकर अनेक प्रकार के नाटक नचाता है। इसका उदय सतत रहता है। इसको कम - क्षीण करने की शक्ति एक मात्र आत्मा के ज्ञान में ही है । और ज्ञान भी ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से दबा हुआ पड़ा है। ऐसी स्थिति में आत्मा कमजोर होकर कर्मों के सामने घुटने टेक देती है। जब जब चेतन जीव मोहनीय कर्म के तीव्र उदय से ग्रस्त रहता है तब तब प्रमादि-प्रमादग्रस्त रहता है। और जब जब चेतन-जीव - आत्मा
मूलभूत ज्ञान को विकसित करता है, बढाता है, तब तब वह अप्रमत्त बनता है । बस, यही छट्ठे और सातवें गुणस्थान में अन्तर है । छट्ठे प्रमत्त गुणस्थान में मोहनीय कर्म के
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आध्यात्मिक विकास यात्रा