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प्रमाद से पाप-कर्म की प्रवृत्ति
तत्त्वार्थाधिगम सूत्रकार वाचकमुख्यजी ने सूत्र में लिखा है कि- “प्रमत्तयोगात् प्राणव्यपरोपणं हिंसा” तत्वा. ७/८ " कषायादिप्रमादपरिणतात्मना कायादिकरणव्यापारपूर्वकप्राणव्यपरोपणरूपत्वं, प्रमत्तकर्तृकयोगमाश्रित्य प्राणव्यपरोपणरूपत्वं, प्रमादयुक्त योगमाश्रित्य प्राणव्यपरोपणरूपत्वं द्वेषबुद्ध्याऽन्यस्य दुःखोत्पादनरूपत्वं वा हिंसायाः लक्षणम् ॥ आर्हद् दर्शनदीपिकाकार भी हिंसा के शत लक्षण बताते हुए लिखते हैं कि कषायदि प्रमाद के रूप में परिणत आत्मा द्वारा शरीरादि करण की प्रवृत्ति द्वारा होता हुआ प्राणों का नाश हिंसा रूप है । अथवा प्रमत्त कर्ता के योग के आश्रित होने से प्राण का नाश होना “हिंसा” है । अथवा प्रमाद से युक्त ऐसे योग के आलंबन से होता हुआ प्राण का नाश “हिंसा” कहलाता है । तथा द्वेषबुद्धि से किसी को दुःखी करने रूप प्रवृत्ति हिंसा कहलाती है
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साधु जो सर्व विरतिधर है उसका सारा आधार ही अहिंसा पर है। यदि हिंसा है तो विरति नहीं अविरति है । और अविरति विरति की सर्वथा विरोधि है । अतः साधु की शोभा विरति में । अविरतिधर होना और साधु होना परस्पर विरोधाभासी है। इसलिए साधु हो वह निश्चित रूप से विरतिधर ही है । और मात्र विरतिधर ही नहीं... सर्वविरतिधर state साधु की साधुता श्रेष्ठ कक्षा की हो सकती है । यदि साधु बनकर भी सर्वविरति न ला सके ... और अविरतिधर ही रहे तो पुनः हिंसादि पापों की प्रवृत्ति चलती ही रहेगी । इस तरह पुनः कर्मबंध होता रहेगा ।
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झूठ बोलने से बचना, या चोरी करने से बचना, या अब्रह्म-मैथुन सेवन से बचना बहुत ही आसान है लेकिन सर्वथा - संपूर्ण रूप में हिंसा - अविरति का त्याग करना और पूर्ण अहिंसक बनना सबसे ज्यादा कठिन है । जगत के अन्य सभी साधुओं की तुलना में जैन साधु ने अपने जीवन में आचार-विचार के क्षेत्र में, वाणी-व्यवहार और वर्तन के क्षेत्र में हिंसादि का सर्वथा संपूर्ण त्याग करके रखा है। स्थूल हिंसा का त्यागी तो जैन श्रावक भी बना है। इसलिए श्रावक का पाँचवा गुणस्थान है। और साधु उससे भी एक कदम आगे बढा हुआ है इसलिए निश्चित रूप से साधु को तो श्रावक से भी ज्यादा ऊँचे आचार-विचार रखने ही चाहिए। ऊँचे आचार के क्षेत्र में ऊँची कक्षा की अहिंसा का पालन करना ही चाहिए | श्रावक स्थूल - हिंसा का त्याग करता है तो साधु को तो उससे भी ज्यादा सूक्ष्म-सूक्ष्मतम हिंसा का त्याग करना ही चाहिए। जो साधु बनकर भी श्रावक
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आध्यात्मिक विकास यात्रा