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४ राज कथा— Politics राज्य तंत्र, राजा, मंत्री वर्ग, अधिकारी, अफसर, कर्मचारी वर्ग आदि राजकथा के विषय हैं। चुनाव होना, चुनाव में विजयी होना, आदि हार जीत के विषयों को लेकर गप्पे लगाते रहते हैं । समय व्यतीत करते रहते हैं। आज के वर्तमान काल में जबकि राजतंत्र सर्वथा भ्रष्ट हो चुका है, राजनीति - राजकारण सर्वथा निम्नस्तर पर नीचे उतर रहा है ऐसी स्थिती में इसकी चर्चा विचारणा करते रहना यह कहाँ तक उपयोगी सिद्ध होगा ? जबकि अच्छे ऊँची कक्षा के सज्जन लोग राजकारण में पैर रखने के लिए भी तैयार नहीं है ऐसे गुंडाशाही राजतंत्र के सैंकडों विषयों की कितनी भी चर्चा की जाय तो भी अपनी आत्मा को क्या लाभ ? आध्यात्मिक दृष्टि से ये विषय हमारे लिए कोध कषाय कारक ही सिद्ध होंगे । और कर्म बंधाने के सिवाय किसी लाभ के नहीं होंगे ? अतः इसे प्रमादाचरण कहा है।
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उपरोक्त चार विकथा के पाँचों प्रमाद के भेद में भी काफी ज्यादा समय व्यतीत करके जीव निरर्थक कर्म उपार्जन कर रहे हैं। इसी तरह पाँचों प्रकार के प्रमाद १) मद २) विषय, ३) कषाय, ४) निद्रा और ५) विकथा आत्मा के लिए रत्ती भर भी लाभदायी नहीं सिद्ध होते हैं । ये कर्मबंध कारक ही हैं । अतः मोक्षार्थी - मुमुक्षु के लिए सर्वथा व्यर्थ है ऊपर से अधःपतन करानेवाले हैं। उसमें भी छट्ठे गुणस्थान पर आरूढ हुए ऐसे विरक्त साधु-सन्त महात्मा के लिए प्रमाद के सभी विषय निरर्थक हैं। नुकसान कारक हैं । अतः ये सर्वथा वर्ज्य हैं । ऐसे प्रमाद के विषयों में साधु जितना डूबा हुआ रहेगा उतना ही वह प्रमादि - प्रमत्त कहलाएगा। यद्यपि छट्ठा गुणस्थानक प्रमाद का ही घर है । फिर भी प्रमाद से बचकर आगे बढना बहुत जरूरी है ।
प्रमाद एक बंधहेतु
मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगा बन्धहेतवः ॥
तत्त्वार्थ ८ / १
उमास्वाति वाचकमुख्यजी ने तत्त्वार्थसूत्र में कर्मबंध के ५ हेतु बताए हैं । १) मिथ्यात्व, २) अविरति, ३) प्रमाद, ४) कषाय ५) योग । इन पाँच प्रकार के कर्मबंध के तुओं से कर्म का बंध होता है । १) मिथ्यात्व देव -गुरु-धर्म-तत्त्व से सर्वथा विमुख करके विपरीत विचारणा कराके कर्मबंध का हेतु बनता है । २) पाँचों इन्द्रियों के २३ विषयों में आसक्त रहकर षट्काय के जीवों की रक्षा रूप विरति न धारणकर अविरतिधर बनने से भी भारी कर्मबंध होता है । अतः यह अविरति भी कर्मबंध का कारण बनती है । ३) प्रमाद - १) मद, २) विषय, ३) कषाय, ४) निद्रा, ५) विकथारूप पाँचों प्रकार का प्रमाद
आध्यात्मिक विकास यात्रा
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