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________________ अपनाया। १२ ॥ वर्ष में उग्र तपश्चर्या की । १ वर्ष के ३६० दिन के हिसाब से १२ ॥ वर्ष के कुल ४५०० दिन होते हैं । इतने दिनों में श्री वीर प्रभु ने १८० उपवास एक बार किया। अर्थात् छमासी तप और वह भी चारों आहार के त्यागपूर्वक चौविहारे उपवास के साथ किये । पानी तक सर्वथा नहीं पिया। फिर दूसरी बार....१७५ उपवास किये...वे भी चौविहारे उपवास किये। एकमासी, दो मासी, तीन मासी, और चार मासी आदि उपवासों की तपश्चर्या भी काफी ज्यादा की। भगवान ने छ?- दो उपवास से कम तो तपश्चर्या की ही नहीं । और किसी भी उपवास में पानी तक नहीं लिया। इस तरह १२ ॥ वर्ष के ४५०० दिन के साधना काल में भगवान ने ४१५१ दिन तो उपवास ही उपवास किये । ये सुनकर अक्कल काम न करे.. हम सोच भी न पाएं इतनी प्रबल तपश्चर्या की । सचमुच यह हमारी बुद्धि के परे की बात है । ४५०० दिन में से..४१५१ उपवास के दिन घटा देने से सिर्फ ३४९ दिन ही शेष रहते हैं । इतने ३४९ दिन प्रभु के पारणे के दिन हैं । इतने दिन ही प्रभू ने आहार-पानी लिया और शेष सभी दिन उपवास में बिताए । सोचिए, कितनी उत्कृष्ट कक्षा की उग्र तपश्यर्या थी? उपवास करके अशक्त होकर हम तो घर जा कर सो भी जाते हैं । अशक्तता शरीर को निष्क्रिय-निस्तेज बना देती है। जबकि भ महावीर ने तो इतनी अप्रमत्त भावनां से साधना की कि..उन्होंने १२ ॥ वर्षों में नींद तक न ली । मात्र २ घडी ४८ मिनिट ही सिर्फ नींद ली। शायद आप कहेंगे कि वे तो भगवान थे । अरे ! इतना तो सोचिए कि भगवान थे, का मतलब यह तो नहीं होता है कि लोखंडी शरीर था। नहीं ! हमारे जैसे मनुष्य ही थे। मनुष्य तो औदारिक शरीरधारी होते हैं। वैसे प्रभु भी माता पिता से जन्म लिये हुए औदारिक देहधारी ही थे। आश्चर्य तो और ज्यादा इस बात का होगा कि ४५०० दिन तक भगवान जमीन पर पालखी लगाकर बैठे तक नहीं । चौबीसों घण्टे अप्रमत्तभाव में खडे ही रहते थे । ज्यादातर कायोत्सर्ग मुद्रा में रहकर आत्मध्यान की धारा में विहरते ही रहते थे। यह हमारी बुद्धि से सोचने पर संभव ही न लगे, परन्तु महावीर के जीवन की आश्चर्यकारक घटनाओं में है । जब प्रभु को नींद ही नहीं लेनी है, तो फिर जमीन पर सोने का तो प्रश्न ही खडा नहीं होता है । जगत का सबसे बड़ा आश्चर्य यह कहलाता है । शायद इससे बडा या इसके जैसा आश्चर्य संसार में वापिस बनेगा कि नहीं यह भी एक आश्चर्य केवलज्ञान के दिन वैशाख शुदि १० को प्रभु सन्ध्या के समय वीरासन में पैरों को उत्कट रखकर बैठे और ध्यान साधना की । अन्त में केवलज्ञान-केवलदर्शनादि सब प्रभु साधना का साधक - आदर्श साधुजीवन ७५१
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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