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________________ इस प्रकार संसार में मान-अभिमान के प्रमुख आठ निमित्त कारण हैं । इनके आधार पर, या इनकी विशेष प्राप्ति के कारण जीव अभिमान करने लग जाता है, परन्त श्लोक की दूसरी पंक्ति में पू. कलिकालसर्वज्ञजी साफ-साफ शब्दों में कहते हैं कि- “कुर्वन् मदं पुनस्तानि, हीनानि लभते जनः" ऐसे मद-मान-अभिमान करनेवाला जीव पुनः हीन दशा प्राप्त करता है । कर्मशास्त्र का यह प्रसिद्ध नियम है कि जीव जिस वस्तु का अभिमान करता है कालान्तर या जन्मान्तर में वही वस्तु उसे हीन–विपरीत मिलती है । अतः यह समझकर भी सर्वथा अभिमान से बचने का ही प्रयत्न करना हितावह है। २३ विषय इन्द्रियनाम अंग विषय प्रकार १. स्पर्शेन्द्रिय- चमडी-स्पर्श- ८ शीत, उष्ण, स्निग्ध, रुक्ष, मृदु आदि २. रसनेन्द्रिय- जीभ- रस- ५ तीखा, खट्टा, मीठा, कडवा, तूरा ३. घाणेन्द्रिय- नाक- गंध- . २ सुगंध, दुर्गंध चक्षु इन्द्रिय- आंख- रूप (वर्ण) ५ लाल, नीला, पीला, काला, सफेद ५. श्रवणेन्द्रिय- कान- ध्वनि (शब्द) ३ सचित्त, अचित्त, मिश्र २३ पाँचों इन्द्रियों के २३ विषयों में आसक्त होना यह आत्मभाव स्वभावरमणता भूलने का बडा प्रमाद है। क्योंकि जीव जब जब इन पाँचों इन्द्रियों के २३ विषयों के आधीन होगा तब तब जीव विशेष रूप से कर्म उपार्जन करेगा। क्योंकि इन्द्रियों के विषयों की आसक्ति जीव सुखैषणा के कारण ही करता है । जीव ने कर्मसंयोगवश ऐसा मान रखा है कि इन्द्रियों से ही सुख मिलता है । इसलिए संसारी जीव इन्द्रियों के गुलाम बनकर उनके आधीन बनकर... विषयों में आसक्त होकर कर्म उपार्जन करता है । उपार्जित कर्म के उदय में आने पर भारी दुःखादि सहन करने पड़ते हैं । इस तरह पुनः संसार चक्र चलता ही रहता है। इन्द्रियां पाँचों जड है, शरीर सर्वथा जड है । अरे ! मन भी जड है । और पाँचों इन्द्रियों के २३ विषय-तथा उन विषयों के सभी पदार्थ जड पौद्गलिक हैं। इसलिए जड पुद्गल पदार्थ जो नाशवंत है उनसे शाश्वत सुख प्राप्त करने की इच्छा एक चेतन ज्ञानवान आत्मा करे यह कहाँ तक उचित है? इसलिए स्वस्वरूप-आत्मभाव-स्वभावरमणता छोडकर-भूलकर पर जड पुद्गल पदार्थों के आधीन होना, उनमें सुख प्राप्ति की आशा रखना, ऐसी सुखैषणा को पूर्ण करने के लिए रात दिन प्रयत्न करना यह सब प्रमाद की ही साधना का साधक - आदर्श साधुजीवन ७४५
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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