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साधन सामग्री प्राप्त हो विलासी-आरामी जीव बन जाय इस निमित्त में भी लोगों का अभिमान जगता है । (४) बल मद-शक्ति ताकत ज्यादा बढने पर भी मनुष्य को इसका अभिमान चढता है, अपनी शक्ति से वह दूसरे को डराता-दबाता है। इसमें भी शस्त्र-अस्त्रादि साधन-सामग्री की शक्ति को पाकर जीव मदिरा पिलाए गए शराबी, बन्दर की तरह कूदने लगता है। यह भी मान-अभिमान की स्थिति है । (५) रूपमद- देह सौन्दर्य शरीर का रूप- लावण्य-सौन्दर्य आदि पूर्वपुण्य के कारण अच्छा मनभावन मिला, तो दूसरे कुरूपों को देखकर अपने रूप का अभिमान बढ़ता है और वह उस बढे हुए अभिमान के कारण अपने रूप का प्रदर्शन करने लगता है । अच्छा या खराब रूप-रंग यह जन्मांतरीय कर्मों की देन है । इसमें भी नश्वर-नाशवंत काया का रूप है, जो आज नहीं तो कल, एक दिन मिट्टी में मिलनेवाली है, आग में जलकर राख बननेवाली है। ऐसी मल-मूत्र की भरी हुई और एक चमडी की चद्दर से ढकी हुई इस काया के रूप-रंग का क्या अभिमान करना? इससे पुनः पतन होता है । (६) कुलमद-उच्च नीच गोत्र-(कुल) में जन्म मिलने पर भी जीवों के मन में अभिमान आ जाता है । मृत्यु के बाद किस जाति कुल, वंश-खानदानी या गोत्र में जन्म मिलेगा, यह हमारे पूर्वोपार्जित गोत्र कर्म के आधीन है । जैसे कर्म बांधे होंगे वैसे कुल में जन्म मिलेगा। फिर भी उच्च गोत्र या कुल में जन्म मिलने पर जीव मान-अभिमान करे यह सर्वथा अनुचित है । (७) तपमद- पूर्वजन्मों की आराधित तप-त्याग की संस्कारधारा पर आधारित इस जन्म में भी तप-त्याग के संस्कार उदय में आ सकते हैं, और उनके कारण हम तप-त्यागादि न्यूनाधिक करने लगे, या दूसरों की अपेक्षा यदि हमारी तपश्चर्या-प्रमाण में ज्यादा भी होने लगे तो हमें उसका अभिमान नहीं करना चाहिए। अपने-अपने कर्म के कारण भिन्न-भिन्न प्रकार के जीवों को भिन्न-भिन्न प्रकार की काया मिलती है । किसीको सशक्त शरीर तो किसीको अशक्त शरीर, किसीको रोगी काया मिलती है तो किसीको निरोगी काया मिल सकती है, जिसके आधार पर कोई तप-त्याग ज्यादा कर सके तो कोई कम कर सके । परन्तु ऐसा देखकर तपस्वी को भी अपने तप निमित्त मान-आभिमान नहीं करना चाहिए । (८) श्रुत (ज्ञान) मदजीव मात्र कर्माधीन है । जन्म-जन्मांतर में उपार्जित ज्ञान-अज्ञान की कर्म प्रकृति के कारण किसी जीव को श्रुत शास्त्रादि का ज्ञान ज्यादा मिलता है तो किसी जीव को अज्ञानादि का उदय ज्यादा रहता है । कोई मंदमति तो कोई तीव्रमति रहता है । ऐसे में ज्यादा ज्ञानवाले ज्ञानी जीव को भी कभी अभिमान नहीं करना चाहिए। यह ज्ञान भी अभिमान लाने में एक सहायक कारण बन सकता है । अतः इससे भी बचना लाभप्रद है।
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आध्यात्मिक विकास यात्रा