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प्रमाद
२
विषय
१
३
मद
कषाय
८ +
= ४४ या ५६
२३ + ४ (१६) + ५ +
४ +
मद, विषय, कषाय, निद्रा, और विकथा ये ५ प्रकार के मुख्य प्रमाद हैं। इनकें अवान्तर भेद - ४ कषाय मूल गिनने पर ४४ भेद होते हैं और यदि अवान्तर १६ कषाय गिनें तो ५६ प्रभेद होते हैं । कर्म के विभाजन की दृष्टि से देखने पर मद, विषय, कषाय और विकथा ये चारों मोहनीय कर्म के घर के हैं। और एक मात्र निद्रा यह दर्शनावरणीय कर्म के उदय
1
कारण है।
४
निद्रा
१. मद
वैसे मद कषायों के घर के अभिमान का ही रूपान्तर - प्रकारान्तर है। लेकिन ८ प्रकार के विषयों में विशेष रूप से अहंकार होता है। अतः ये मंद कहे जाते हैं । जाति-लाभ - कुलैश्वर्य-बल-रूप-तप- - श्रुतैः । कुर्वन् मदं पुनस्तानि हीनानि लभते जनः ॥
८ मद
४
विकथा
१
३
६
जाति मद
लाभ कुल मद ऐश्वर्य
बल
रूप
तप
श्रुतमद
(१) जातिमद - जाति, लाभ, कुल, ऐश्वर्य, बल, रूप, तप और श्रुत (ज्ञान) आदि आठ प्रकार से मुख्यरूप से मान-अभिमान किए जा सकते हैं। जिन निमित्त कारणों से मनुष्य मान अभिमान कर सकता है वे संभाव्य ८ स्थान इस श्लोक में गिनाएं गए हैं। (१) उच्च जाति को प्राप्त मनुष्य अपने से नीचेवाले-नीच जातिवाले को देखकर ईर्ष्या-अभिमान आदि करता है । (२) लाभ मद- धन संपत्ति - सत्तापद - प्रतिष्ठा - यश-कीर्ति का लाभ होना, मिलता ही रहना, बढते ही रहना, इत्यादि प्रकार के लाभ से मनुष्यों के मन में मान-अभिमान बढता ही जाता है । (३) ऐश्वर्यमद - पूर्व उपार्जन के कारण आगामी काल में धन-धान्य- १ - भोग-विलास, ऐश्वर्य की विपुल
साधना का साधक - आदर्श साधुजीवन
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