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करना, दूर करने के लिए पुरुषार्थ न करना प्रमाद है। अर्थात् निर्जरा करने की शक्ति-समर्थता पूरी होते हुए भी न करना यह प्रमाद है।
याद रखिए.. प्रमाद वही सेवन करता है जिसके पास शक्ति-सामर्थ्य-गुणादि पूरी तरह हैं । सबका खजाना है और फिर भी वह प्रमाद करता है यह मानसिक प्रमाद है। यदि वह चाहे तो अपने खजाने का पूरा उपयोग कर सकता है। जैसे एक अरबपती गर्भश्रीमंत व्यक्ति जिसके पास धन-संपत्ति आदि अपार है, अपरिमित है वह व्यापारादि में अप्रमत्त नहीं रह पाता है। ज्यादा सक्रिय नहीं रह पाता है.. हाँ.. होता है.....देखेंगे. .. आराम से सोचेंगे... होगा...अरे अभी इतनी क्या जल्दी पडी है ? जाएँगे... उठेगे ... इत्यादि वाचिक प्रमाद भाषा में सुनाई देता है । यह वाचिक प्रमाद की कक्षा है । वह मन के साथ जुडता है । मानसिक प्रमाद की कक्षा खडी करता है । मन शरीर के साथ जुडा है। अतः मन के जरिए प्रमाद शरीर पर उतरकर कायिक बन जाता है। परिणाम स्वरूप काया आलस्य से भारी बन जाती है । शेठ लेटा ही रहता है । पडा रहता है । स्फूर्ति नहीं आती है।
ठीक इसी तरह प्रमादग्रस्त साधु की भी यही और ऐसी ही स्थिति बनती है । माधु भी अपने पंचाचार आदि धर्म के नियमों को पूरी तरह जानता है, समझता है । उस पृरा ख्याल है । सब कुछ कर भी सकता है । परन्तु प्रमाद उसे घेर लेता है और वह मृत-मुडदे की तरह निष्क्रिय निर्वीर्य होकर आलसी बन जाता है। हाँ, अभी करूँगा, उलूंगा, जाऊँगा, देखूगा ऐसा प्रमादी मानस बनाकर अपनी साधना से निष्क्रिय हो जाता है । अपना खुद का अहंकार भी हमें प्रमादि-आलसी बना देता है । वहाँ देरी आदि करना यह अभिमान के भाव से होता है । इस तरह अहंकार भाव का कषाय भी व्यक्ति के प्रमाद का कारण बन जाता है । जो आज के वर्तमान काल में फैशन जैसी बात बन रही है ऐसा देखने में आता
__ मानसिक प्रमाद विचारतंत्र में घूमता है । विचार ही ऐसे बन जाते हैं कि... हाँ.... हाँ... होगा...देखुंगा, सोचूँगा, विचार होगा तो करूँगा। मन में आएगा तो आपको हाँ करूँगा। मुझे शायद कभी पसंद पडेगा तो ऐसा कभी करूंगा। इस तरह मानसिक प्रमाद के कारण ऐसे व्यक्ति का Strong mind नहीं बन पाता है। निर्णायक शक्ति उसके पास नहीं रहती है । Will power नहीं बन पाता है । उल्टा ऐसी व्यक्ति कभी कभी Depresion में भी चली जाती है।
साधना का साधक - आदर्श साधुजीवन
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