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रूप धारण कर सकता है, और पुनः अपने मूलस्वरूप में आ सकता है। परन्तु परमाणु जड-अजीव होने के कारण और एक प्रदेशरूप ही होने के कारण तथा संकोच-विकास का गुण सर्वथा न होने के कारण तथा ज्ञानादि गुण सर्वथा न होने के कारण किसी भी प्रकार की संभावना जीवात्मा जैसी नहीं रहती है । परमाणुओं में संघात विघात की प्रक्रिया होती रहती है। जिससे स्कंधस्वरूप बनते हैं और पुनः विघात की प्रक्रिया होने से परमाणु स्वरूप बनते हैं। पुनः संघात की प्रक्रिया होने से स्कंधरूप बनते हैं। परमाणु अवस्था में भी अजीव पुद्गल रूप मूल द्रव्य का अस्तित्व सदा काल रहता है । अस्तित्व नष्ट नहीं होता है । अतः पुद्गलास्तिकाय द्रव्य कहलाता है । हाँ, स्कंध पर्याय के रूप में अस्तित्व सदा नित्य नहीं रहता है। स्कंध-देश-प्रदेश और परमाणु ये चारों अवस्था पर्यायस्वरूप हैं। अतः पर्याय परिवर्तनशील है । उत्पाद व्यय पर्यायों में होता ही रहता है। जबकि परमाणु स्वरूप में भी अजीव तत्त्व का अस्तित्व नित्य त्रैकालिक सदा ही रहता है । जीवगत विशेषता तथा अजीवगत विशेषता में यह मूलभूत अन्तर जो है जैसा है वैसा ही यहाँ प्रस्तुत किया है । परन्तु अजीव पुद्गल द्रव्य में गुणस्थानों की वृद्धि या विकासादि की कोई प्रक्रिया नहीं होती है । जबकि जीव में गुणस्थानों के सोपानों पर आरोहण करते हुए विकास की प्रक्रिया आगे बढती है । किन जीवों में गुणस्थानों पर चढते हुए क्रम का विकास होता है ? और किन में संभव नहीं है उनका विचार यहाँ क्रमप्राप्त रूप से करते हैं।-..
भव्य-अभव्यादि जीवों के प्रकार
मिथ्यात्व भी यदि किसी में होगा तो जीव में ही होगा, और सम्यक्त्व भी होगा तो जीव में ही होगा। क्योंकि ये जीवगत दोष एवं गुण हैं। अतः जीव में ही रहेंगे। अजीव-पुद्गलादि में तो वैसे भी संभव ही नहीं है । जीवात्मा जो संसार में भिन्न भिन्न योनि में जन्म लेकर भिन्न भिन्न प्रकार के शरीर धारण करती है तब जन्म एवं देह के आधार पर जीवों का वर्गीकरण करके ५६३ प्रकारों-भेदों का विचार किया है। अब यहाँ पर मूल जीवात्मा ही किस प्रकार के हैं ? कैसे हैं ? किस स्वरूप के हैं ? उसका विचार करते हैं। अतः इसमें देह आधारित दृष्टि से विचार नहीं करना है । ये जन्मादिदेहजन्य भेद तो कर्मकृत हैं। अतः तथाप्रकार के कर्मों के कारण कैसा जन्म किस जीव को किस योनि में मिलता है उसके आधार पर भेदों का ज्ञान होता है। ____ जो कर्मकृत न होते हुए भी जीवात्मा के ही प्रकारों को सूचित करते हैं ऐसे ३ भेद मुख्य हैं । १) भव्य जीव २) अभव्य जीव और ३) जातिभव्य या दुर्भव्य । इस तरह तीन
साम्यवत्व गुणस्थान पर आरोहण