________________
1
इन्द्रियवाले विकलेन्द्रियों के जन्मों में भी जीव अव्यक्तावस्था में मिथ्यात्व में ही फसा हुआ था । अनन्तकाल बितानेवाला यह जीव कैसे विकास प्रारंभ करे ? भले, निगोद में जीवों का स्वरूप अत्यन्त सूक्ष्मतम हो । जो आँखों से भी देखी नहीं जा सकती है ऐसी अवस्था में भी जीव का अस्तित्व तो है ही । अस्तित्व कहाँ नष्ट हो गया है ? नहीं । आत्मा द्रव्यरूप में अनन्त काल तक सदा रहनेवाली है। उसका अस्तित्व कदापि नष्ट नहीं होता है । सूक्ष्मतम स्थिति में रहना या विशाल - विराट स्वरूप में आना यह जीवगत विशेषता है । संकोच-विकासशील स्वभाव - गुणधर्मवाला जीव द्रव्य है। सूक्ष्मतम अवस्था में जीवात्मा का 'कद' आदि परमाणु सदृश हो जाता है। जैसे परमाणु अदृश्य - सूक्ष्मतम - अछेद्य - अभेद्य अकाट्य - अदाह्य आदि गुणवान द्रव्यस्वरूप होता है ठीक वैसे ही जीव भी अछेद्य, अभेद्य, अकाट्य अदाह्य, अविभाज्य आदि गुणधर्मोंवाला ही होता है। दोनों के बीच इतना ही अन्तर है कि... जीव में संकोच विकासशील स्वभाव है, गुण है। जिसके कारण अपने स्वरूप को सूक्ष्म से सूक्ष्मतम भी कर सकता है और जरूरत पडने पर विस्तार करते हुए.... १४ राजलोक व्यापी भी कर सकता है । आश्चर्य तो इस बात का है कि ... जीव असंख्यप्रदेशी द्रव्य होते हुए भी परमाणु के जैसी समकक्ष सूक्ष्मतम अपनी अवस्था बना सकता है । और ऐसी अवस्था में भी जीव के असंख्य प्रदेशों का स्वरूप- अस्तित्व बरोबर बना रहता है। एक भी प्रदेश बिखर नहीं जाता है। एक भी प्रदेश अलग नहीं होता है । असंख्यप्रदेशी पिण्डस्वरूप जीव का अस्तित्व अनादि अनन्तकालीन है । तीनों काल में जीव का अस्तित्व- प्रदेशों का स्वरूप, सदा एक समान - एक जैसा ही रहता है । अतः एक भी प्रदेश के नष्ट होने का प्रश्न ही नहीं खडा होता है। आप सोच भी नहीं पाओगे कि ... एक छोटे से बाजरी ज्वारी जैसे अनाज के दाने में से जब अंकुर फूटता है, वह अंकुरित होता है तब अंकुरे के छोटे से कद में भी अनन्त जीव एक साथ रहते हैं । इतनी छोटी सी अवस्था में भी एक साथ अनन्त जीवों का अस्तित्व रहता है । तो एक जीव का स्वरूप कितना सूक्ष्मतम हुआ ? जिसकी हम बुद्धि की तुला पर कल्पना भी नहीं कर सकते हैं । परमाणु जितनी सूक्ष्मतम अवस्था की समानता में आ जाता है । ऐसी सूक्ष्मतम - अवस्था में परमाणु जरूर स्वतंत्र रहता है । परन्तु परमाणु एक प्रदेशरूप है जबकि जीव असंख्यप्रदेशी द्रव्य है । असंख्य प्रदेश एक साथ रहते हुए भी परमाणु समकक्ष सूक्ष्मतम अवस्था धारण करने के पश्चात् भी जीव अपने ज्ञानादि सब गुणों का अस्तित्व टिका सकता है। संकोच - विकासशील स्वभाव की विशेषता के कारण पुनः विकसित कक्षा में आ सकता है । और अन्त में १४ राजलोक जितना विस्तृत व्यापक
1
1
४४०
आध्यात्मिक विकास यात्रा