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स्वरूप में है। अतः उपाध्यायजी के समस्त गुण ज्ञान-शास्त्रादि संबंधी है । ११ अंगसूत्र + १२ उपांग सूत्रों को पढने-पढानेवाले उपाध्यायजी तथा क्रिया विशिष्टता एवं पूर्व के अभ्यासी इस तरह भी २५ गुणों के धारक उपाध्यायजी महाराज कहलाते हैं। १) आचारांग सूत्र पाठक २) सूत्रकृतांग सूत्र पाठक ३) स्थानांग सूत्र पाठक ४) समवायांग सूत्र पाठक ५) भगवती सूत्र पाठक ६) ज्ञाता सूत्र पाठक ७) उपासकदशांग सूत्र पाठक ८) अन्तकृद्दशांग सूत्र पाठक ९) अनुत्तरोपपातिक सू. १०) प्रश्न व्याकरण सूत्र. ११) विपाक अंग सूत्र पाठक १२) उववाइ उपांग सूत्र. १३) रायपसेणि उपांग सूत्र. १४) जीवाभिगम उपांग सूत्र. १५) पनवणा उपांग सूत्र. १६) जंबूद्वीप पत्रत्ति सूत्र. १७) चन्द्रप्रज्ञप्ति उपांग सूत्र. १८) सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र पाठक १९) निरयावली उपांग सूत्र. १८) कप्पिआ उपांग सूत्र. २१) पुष्फिआ उपांग सूत्र. २२) पुष्पचूलिआ उपांग सू. २३) वन्हिदशा उपांग सूत्र . . २४) द्वादशांगीश्रुत उपांग. २५) द्वादशांगी श्रुत-अर्थ उपांग सूत्र पाठक
इस तरह ११ अंग और १२ उपांग सूत्रों के पठन-पाठन के पाठक आधार पर २५ गुण होते हैं। दूसरी तरह ११ अंगसूत्र और १४ पूर्व शास्त्रों के पठन-पाठन के आधार पर भी ११ + १४ = २५ गुण होते हैं । यह दूसरी पच्चीसी दूसरे प्रकार से होगी ।
साधु पद के २७ गुण
पंचपरमेष्ठियों में पाँचवे पद पर साधु भगवंतो की गणना की गई है । साधु महात्मा भी अपने पद के २७ गुणों के धारक होते हैं । वे २७ गुण निम्न प्रकार हैं। . .
१) पृथ्वीकाय रक्षक २) अप्काय रक्षक ३) तेउकाय रक्षक ४) वायुकाय रक्षक , ५) वनस्पतिकाय रक्षक ६)त्रसकाय रक्षक ७) प्राणातिपात विरमण ८) मृषावाद विरत - ९) सर्वतः अदत्तादान विरत
महाव्रत धारक १०) सर्वतः मैथुनविरमणव्रती ११) सर्वतः परिग्रह त्यागी १२) सर्वतःरात्रिभोजनत्यागी १३) ४ कषाय निग्रहकारी १४) स्पर्शेन्द्रिय विषय त्यागो १५) रसनेन्द्रियविषयत्यागी १६) घाणेन्द्रिय विषय निग्रही १७) चक्षुइन्द्रियविषयत्यागी १८) शीतादि २२ परीषह
सहिष्णु १९) श्रोत्रेन्द्रिय विषय त्यागी २०) क्षमादिगुण धारक २१) भावविशुद्धि धारक
साधना का साधक - आदर्श साधुजीवन
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